
कुशीनगर। सरकारी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हुए मृतक आश्रित कोटे के दुरुपयोग का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। यहां मां के पहले से सरकारी सेवा में होने के बावजूद पिता की मृत्यु के बाद पुत्र ने तथ्यों को छिपाकर मृतक आश्रित कोटे में सरकारी नौकरी हासिल कर ली। यह मामला न सिर्फ नियम-कानून की हत्या है, बल्कि व्यवस्था और नैतिकता के मुंह पर करारा तमाचा भी है।
मामला कुशीनगर जनपद के कसया विकास खंड अंतर्गत सखवनिया स्थित महात्मा गांधी इंटरमीडिएट कॉलेज से जुड़ा है, जहां अविनाश गुप्ता नामक व्यक्ति पर मृतक आश्रित योजना का फर्जी तरीके से लाभ लेने का गंभीर आरोप है। बताया जा रहा है कि अविनाश के पिता खड्डा तहसील क्षेत्र के गांधी इंटरमीडिएट कॉलेज में शिक्षक थे, जिनकी वर्ष 2004 में सेवा के दौरान मृत्यु हो गई थी। उस समय अविनाश की मां स्वास्थ्य विभाग में नियमित सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्यरत थीं।
शासनादेश और स्पष्ट सरकारी नियमों के अनुसार यदि परिवार का कोई सदस्य पहले से सरकारी सेवा में हो तो मृतक आश्रित योजना का लाभ नहीं दिया जा सकता। इसके बावजूद तथ्यों को छिपाकर और कथित रूप से फर्जी दस्तावेजों के सहारे अविनाश गुप्ता ने वर्ष 2006 में महात्मा गांधी इंटरमीडिएट कॉलेज सखवनिया में परिचारक पद पर मृतक आश्रित कोटे से नियुक्ति प्राप्त कर ली। यही नहीं, वर्तमान में वह पदोन्नति पाकर सहायक लिपिक के पद पर भी कार्यरत है।
विशेषज्ञों और जानकारों का कहना है कि यह प्रकरण खुली धोखाधड़ी, कागजी खेल और सिस्टम की मिलीभगत का उदाहरण है। सवाल यह उठता है कि जब मां पहले से सरकारी नौकरी में थी तो अविनाश को यह नियुक्ति किस नियम और किस अधिकारी के आदेश पर दी गई। बिना समुचित जांच-पड़ताल के नियुक्ति होना या तो गंभीर प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है या फिर जानबूझकर आंख मूंदने की ओर इशारा करता है।
आरोप है कि ऐसे मामलों में वास्तविक जरूरतमंद गरीब विधवाएं और अनाथ बच्चे सालों तक दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं, जबकि रसूखदार परिवार योजनाओं को निजी जागीर समझकर हड़प लेते हैं। यह सिर्फ एक नौकरी का मामला नहीं, बल्कि उन हजारों जरूरतमंद परिवारों के हक पर की गई सरेआम डकैती है, जिनके लिए मृतक आश्रित योजना बनाई गई थी।
विशेषज्ञों की राय है कि इस पूरे प्रकरण में तत्काल उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए। अवैध नियुक्ति को निरस्त किया जाए, झूठे दस्तावेजों के आधार पर एफआईआर दर्ज हो और जिन अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखकर फाइल आगे बढ़ाई, उन पर निलंबन व विभागीय कार्रवाई की जाए। यदि इस मामले में भी चुप्पी साध ली जाती है, तो यह संदेश जाएगा कि शासन में नियम नहीं, बल्कि सेटिंग और रसूख ही सर्वोपरि है।
इस संबंध में महात्मा गांधी इंटरमीडिएट कॉलेज सखवनिया के प्रधानाचार्य अमर बहादुर से बातचीत करने पर उन्होंने कहा कि यह मामला उनके कार्यकाल का नहीं है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि अविनाश की नियुक्ति मृतक आश्रित कोटे में हुई थी, जबकि आगे की जांच और कार्रवाई विभागीय विषय है।