
भजन और लोकगीतों की स्वरलहरियों में भावविभोर हुए दर्शक, सातवें दिवस का रहा मुख्य आकर्षण
रामनगर (बाराबंकी)।
सात दिवसीय महादेवा महोत्सव के सातवें दिवस पर भक्ति और लोकसंगीत का अद्भुत संगम तब देखने को मिला जब सुप्रसिद्ध लोक गायिका सरोज श्रीवास्तव ने अपने सुरों से ऐसा जादू बिखेरा कि पूरा पंडाल तालियों और जयकारों से गूंज उठा। उनके मंच पर आते ही वातावरण भक्तिमय हो गया और दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देर तक बैठे रहे।
भक्ति से शुरुआत—“आओ भोलानाथ” ने बांधी अद्भुत ऊर्जा
कार्यक्रम की शुरुआत सरोज श्रीवास्तव ने भावपूर्ण भजन “आओ भोलानाथ” से की। इस प्रस्तुति ने हर दर्शक को शिव भक्ति में डुबो दिया। जैसे ही गीत की स्वर लहरियां गूंजीं, मंच के सामने बैठी श्रद्धालु महिलाएँ और बुजुर्ग भावविभोर हो उठे।
लोकगीतों ने छू लिया दिल—दर्शक देर तक डटे रहे
इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक लोकप्रिय और मार्मिक लोकगीतों की प्रस्तुति दी, जिनमें—
“मेरी गरीब खाने में”
“गंगा जी का देखेव, चंद्रमा का देखेव”
“जरा कुटिया गरीबों की देखो”
इन गीतों ने दर्शकों के दिलों को गहराई तक छुआ और पंडाल में अद्भुत शांति और अपनत्व का भाव व्याप्त हो गया।
“गोली खेले भोला फागुन मा” पर झूम उठे भक्त
कार्यक्रम का चरम उस समय देखने को मिला जब उन्होंने लोकपारंपरिक गीत “गोली खेले भोला फागुन मा” प्रस्तुत किया। दर्शक झूमने लगे, युवा तालियों से ताल मिलाते रहे, और बड़े-बुजुर्ग भी गुनगुनाने लगे।
उनकी सुरीली आवाज़, मंच पर सहज उपस्थिति और पारंपरिक गायन शैली ने महोत्सव की गरिमा को और भव्य कर दिया।
लोक संस्कृति को मिल रहा नया आयाम
भक्ति और लोकगीतों की सशक्त प्रस्तुति के लिए जानी जाने वाली सरोज श्रीवास्तव ने इस कार्यक्रम के माध्यम से न केवल दर्शकों का मनोरंजन किया, बल्कि भारतीय लोककला और परंपरा को नई ऊर्जा भी प्रदान की।
दर्शक बार-बार उनकी प्रस्तुति की प्रशंसा करते नजर आए और कई लोग देर तक मंच के सामने बैठे रहे।
सातवें दिवस का मुख्य आकर्षण रहा यह कार्यक्रम
महादेवा महोत्सव के दौरान सरोज श्रीवास्तव की प्रस्तुति सातवें दिवस का प्रमुख आकर्षण बनी। मंच पर भक्ति, संगीत, लोक परंपरा और वातावरण की आध्यात्मिक ऊर्जा ने पूरे आयोजन को विशेष गरिमा प्रदान की।