पंचांग के अनुसार 25 नवंबर को एकादशी की तिथि है. इस एकादशी की तिथि को हिंदू धर्म बहुत ही विशेष और महत्वपूर्ण माना गया है. हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व भी बताया गया है. एकादशी का व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ और सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है.
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं महाभारत काल में युधिष्टिर और अर्जुन को एकादशी के व्रत के बारे में बताया था. महाभारत के युद्ध से पूर्व युधिष्टिर ने इस व्रत को किया था.
देवशयनी एकादशी से आरंभ हुए थे चातुर्मास
देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए पाताल लोक के लिए प्रस्थान कर जाते हैं. जहां पर वे अपने शयनकक्ष में विश्राम करते हैं. जब भगवान शयनकक्ष में पहुंच जाते हैं तो चातुर्मास आरंभ हो जाता है.
पंचांग और हिंदू मान्यता के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का समय ‘चातुर्मास’ माना जाता है.
देवउठनी एकादशी पर जागृत होंगे भगवान विष्णु
देवउठनी एकादशी दिवाली के पर्व के बाद आती है. इस एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस एकादशी की तिथि पर भगवान विष्णु जागृत होते हैं. यानि वे शयन काल को पूर्ण करते हैं और पुन: पृथ्वी की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं.
चातुर्मास में पृथ्वी की बागडोर भगवान शिव के हाथों में होती हैं. ऐसा माना जाता है कि चातुर्मास में भगवान शिव माता पार्वती के साथ पृथ्वी का भ्रमण करते हैं.
चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास में बादल और वर्षा के कारण सूर्य और चन्द्रमा की शक्ति कमजोर पड़ जाती है. जिसका मनुष्य की सेहत पर भी असर पड़ता है. माना जाता है कि चातुर्मास के समय पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी प्रभावित होती है.
जिस कारण वर्षा ऋतु में संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है. इस मौसम में जल की अधिकता होती है और सूर्य का प्रभाव धरती पर कम हो जाता है.
इसलिए व्यक्ति को चातुर्मास में अनुशासित जीवन शैली को अपनाना चाहिए. जिससे वह स्वस्थ्य रह सके.
चातुर्मास का समापन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को हो रहा है. इस एकादशी का देवोत्थान, देवउठनी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है.
देवउठनी एकादशी से आरंभ होंगे मांगलिक कार्य
देवउठनी एकादशी से शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य आरंभ हो जाएंगे. देवउठनी एकादशी से गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, भवन निर्माण, वाहन खरीद, भूमि पूजन, कर्ण छेदन, नामकरण संस्कार जैसे मांगलिक कार्य शुभ मुहूर्त में किए जा सकते हैं.