पूर्वी लद्दाख में सीमा पर तनाव कम करने की कोशिशों के बावजूद चीन अपनी पैंतरेबाजी से बाज नहीं आ रहा।
भारत में चीन के राजदूत सुन वीडॉन्स ने पिछले दिनों दावा किया था कि एलएसी पर आमने-सामने वाली जगहों से सेनाएं पीछे हट गई हैं। भारत ने के इस झूठ की पोल खोलते हुए स्पष्ट तौर कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिकों के वापसी की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है।
भारत ने चीन को दो टूक कहा कि वह झूठ का सहारा न लेते हो हुए सीमा पर तनाव घटाने की प्रक्रिया के प्रति ईमानदारी बरते। भारत के तमाम कूटनीतिक और द्विपक्षीय वार्तालापी प्रयासों के बावजूद जो संकेत मिल रहे हैं, वे ये हैं कि सीमा पर चल रही चीन की विस्तारवादी आक्रामक गतिविधियों में कोई कमी नहीं आ रही है। इधर भारत ने अपनी सैन्य गतिधिवियों में जो बढ़ोतरी की है और जिस तरह की तैयारियां शुरू की हैं, उनसे भी यह संकेत मिल रहा है कि चीन को केवल बातचीत के माध्यम से समझाया नहीं जा सकता है।
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इधर समय से पहले राफेल विमान का लाया जाना भी भारत की चिंता की तरफ परोक्ष इशारा करता है तो साथ ही इस बात की ओर भी इशारा करता है कि भारत अगर जरूरत पड़ी तो प्रत्यक्ष सैनिक मुठभेड़ से पीछे नहीं हटेगा। भारत-चीन सीमा पर तनाव के बाद भारत को अमेरिकी और अन्य पश्चिमी देशों ने ही सैन्य आपूर्ति का भरोसा नहीं दिलाया है बल्कि रूस ने भी समय से पहले मिसाइल और रक्षा प्रणाली एस-400 की आपूर्ति करने का आश्वासन दिया है। चीन के मन में भी कोई शंका नहीं रहनी चाहिए कि भारत की सीमा पर चलाई जा रही उसकी हर गतिविधि को भारत निर्विरोध स्वीकार कर लेगा। यह भारत की अस्मिता का प्रश्न है।
भारत के प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री कई बार यह कह चुके हैं कि वे देश की सीमाओं को लेकर कोई भी समझौता नहीं करेंगे। यानी वे चीन से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हैं। इस दृष्टि से राफेल का आना अच्छा संकेत है। इससे भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में पर्याप्त इजाफा होगा। साथ ही इससे दुश्मन देशों पर दबाव भी बनेगा। इन सबके बावजूद यह भी सच है कि इस समय कोरोना के चलते भारत की आर्थिक स्थिति कमजोर भी है।देश की अर्थव्यवस्था कब पटरी पर लौटेगी, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता।
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ऐसी स्थिति में युद्ध होने का अर्थ है कि भारत का भारी दबाव में आ जाना। इसलिए यह आवश्यक है कि चीन से मुकाबले के लिए भारत को अपनी आंतरिक व्यवस्था को न केवल संभालना होगा बल्कि पहले से कई गुना ज्यादा मजबूत बनाना होगा। क्योंकि युद्धनीति का यथार्थ यह है कि लड़ाई केवल हथियारों से ही नहीं लड़ी जाती।
निश्चित रूप से हथियारों की युद्ध में बहुत बड़ी भूमिका होती है, लेकिन सच यह भी है कि युद्ध दो व्यवस्थाओं के बीच होती है और यही निर्णायक भी होता है। इसलिए यह भी समझना आवश्यक है कि चीन बड़ा और शक्तिशाली देश है, उभरती हुई दूसरी वि व्यवस्था है, चीन को युद्ध में परास्त करने के लिए अपनी-आंतरिक और बाह्य-दोनों व्यवस्थाओं को मजबूत करना होगा।