
लखनऊ इन दिनों अपनी खूबसूरत नवाबी रौनक के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपाए हुए है—शहर की हवा जहरीली हो चुकी है। सुबह से रात तक एक हल्की धुंध शहर पर तैरती रहती है, और हवा में मौजूद प्रदूषक कण लोगों की सांसें तक भारी कर रहे हैं। बावजूद इसके, राजधानी अपनी आदत के मुताबिक मुस्कराती जरूर दिखती है, लेकिन उसकी इस मुस्कान के पीछे साफ चिंता छिपी है।
पिछले कुछ दिनों में लखनऊ का AQI कई इलाकों में “बहुत खराब” श्रेणी तक पहुंच गया है। हवा में मौजूद PM 2.5 और PM 10 जैसे कण सीधे लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाल रहे हैं। अस्पतालों में सांस संबंधी रोगियों की संख्या बढ़ी है। गले में खराश, आंखों में जलन, सीने में भारीपन और अस्थमा के केस में तेजी जैसी स्थितियां लगातार सामने आ रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि यह हवा किसी भी उम्र के व्यक्ति के लिए सुरक्षित नहीं है।

शहर की यह हालत सिर्फ मौसम की वजह से नहीं, बल्कि बढ़ते वाहनों, निर्माण कार्यों, औद्योगिक प्रदूषण और कम होती हरियाली का संयुक्त नतीजा है। सुबह के समय गोमतीनगर, हजरतगंज, चारबाग, अलीगंज जैसे इलाकों में वाहनों का धुआं हवा को सबसे ज्यादा दूषित कर रहा है। वहीं, शहर में हो रहे बड़े-बड़े निर्माण कार्यों की धूल लगातार आसमान में उड़ रही है। खुले पड़े निर्माण स्थल हवा में PM 10 कणों को बढ़ा देते हैं। इसके साथ ही कई क्षेत्रों में कचरा जलाने से भी प्रदूषण और बढ़ रहा है।
बढ़ती जनसंख्या और तेजी से फैलते शहरीकरण के बीच शहर की हरियाली भी कम होती जा रही है। विकास की रफ्तार तेज है, लेकिन पेड़ों की कटान उसकी कीमत बन रही है। गोमती किनारे की हरियाली थोड़ी राहत देती है, लेकिन वह शहर के बाकी हिस्सों के प्रदूषण का बोझ नहीं उठा पा रही। यही वजह है कि लखनऊ की हवा अब लोगों के लिए धीमे ज़हर की तरह काम कर रही है।
सरकार और प्रशासन कोशिशें कर रहे हैं—सड़कों पर पानी का छिड़काव, कचरा जलाने पर रोक, निर्माण स्थलों की निगरानी और ट्रैफिक नियंत्रण जैसी कार्रवाई जारी है। लेकिन जमीन पर इन कदमों का असर उतना दिखाई नहीं दे रहा, जितनी स्थिति की मांग है। शहर को सिर्फ कागज़ों पर नहीं, बल्कि वास्तव में लागू होने वाले सख्त उपायों की जरूरत है।
इसके बीच लखनऊ के लोग भी जागरूक होते दिख रहे हैं। सोशल मीडिया पर हवा को लेकर कैंपेन चल रहे हैं। पर्यावरण प्रेमी समूह पेड़ लगाने से लेकर कचरा न जलाने की पहल तक कर रहे हैं। कई परिवारों ने बच्चों और बुजुर्गों के लिए सुबह-शाम घर से बाहर निकलना कम कर दिया है। कई लोग मास्क को फिर से अपनी रोजमर्रा का हिस्सा बना रहे हैं।
हालांकि तस्वीर धुंधली है, पर उम्मीद अभी भी बाकी है। लखनऊ की सबसे बड़ी खूबसूरती उसकी सकारात्मकता है। यह शहर हर मुश्किल दौर से निकलकर फिर से चमकने की ताकत रखता है। आज उसकी हवा बीमार जरूर है, लेकिन इलाज संभव है। जरूरत बस इतनी है कि शासन, प्रशासन और जनता तीनों मिलकर इस जहर पर लगाम लगाने की ठान लें।
फिलहाल लखनऊ मुस्करा जरूर रहा है, लेकिन उसकी सांसें भारी हैं। शहर हमसे यही मांग रहा है—अपनी हवा को बचाइए, ताकि वह फिर से साफ आसमान और खुली हवा में जी सके।