कहीं ये गलती आपने भी तो नही करी ?
नई दिल्ली। 27- 28 मार्च को पूरे देश में होली का त्यौहार मनाया जाएगा। लेकिन बहुत सी जगहों पर होली से कई दिल्ली पहले ही होली की तैयारियां और तरह तरह की होली मनानी शुरू हो जाती है। होलिका दहन रंगों के त्यौहार होली से एक दिन पहले किया जाता है। जिसमे गली मोहल्ले और सोसाइटी में सभी लोग मिलकर होली का दहन करते है। इस दिन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। होली के इस पावन त्यौहार पर दहन के लिए लकड़ियों को एकत्रित किया जाता है। लेकिन बहुत लोगों को यह नही पता होता कि किस लकड़ी का उपयोग किया जाना चाहिए। इसलिए वह बिना जाने ही किसी भी पेड़ की लकड़ी को होलिका दहन में जला देते है।
इन पेड़ों की लकड़ियों को न जलाए
अगर धार्मिक नज़रिये की बात करे तो हर पेड़ पर किसी न किसी देवी-देवताओं का वास माना जाता है। यही कारण है कि अलग अलग त्यौहारों पर अलग अलग पेड़ो की पूजा अर्चना करते है। पेड़ो की पूजा करने का विधान हमारे शास्त्रों ने दिया है। बहुत सारे पेड़ है जिनकी लोग पूजा करते हैं जैसे :- बरगद का पेड़ , पीपल का पेड़, शमी का पेड़, केला का पेड़, आम का पेड़, अशोक का पेड़, और बेलपत्र आदि का पेड़ इन सभी पेड़ो की हम पूजा करते हैं। इसलिए होलिका दहन करते वक़्त ये अवश्य याद रखे कि जो लकड़ी एकत्रित कर रहें है, वो इन पेड़ों की न हों।
इन लकड़ियों का करें इस्तेमाल
होलिका दहन के शुभ अवसर पर कुछ चुने गए पेड़ो की लकड़ियां जलाने की ही सलाह दी जाती है। एरंड और गूलर के पेड़ों की लड़कियां जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। क्योंकि इस मौसम में इन दोनों पेड़ो के पत्ते झड़ने लगते हैं और अगर इनको जलाया नही गया तो इनमें कीड़े लगने लगते हैं। इसलिए इनका इस्तेमाल होलिका दहन में करना ही सही होगा। इनके साथ ही गोबर से बने उपलें और कंड़ो का इस्तेमाल करें, ये ज्यादा बेहतर विकल्प है।
क्यों किया जाता है होलिका दहन
होलिका दहन का पावन पर्व बुराई के अंत का प्रतीक है। इसलिए हर साल इस त्यौहार को बुराई को खत्म करने के उद्देश्य से हर्षोल्लास से मनाया जाता है।