तिरुवनंतपुरम. न्यायमूर्ति केमल पाशा, जो 2018 में केरल हाईकोर्ट से सेवानिवृत्त हुए थे, उन्होंने कहा है कि जब तक भारतीय संविधान वैध है और इसके अनुच्छेद 25 और अनुच्छेद 26 लागू होते हैं, तब तक हिंदू केंद्रित या मुस्लिम-केंद्रित राष्ट्र होने का कोई सवाल ही नहीं है।
न्यायमूर्ति पाशा ने कहा कि भारतीय राष्ट्र देश के संविधान पर आधारित है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम समुदाय या किसी अन्य समुदाय के लिए कोई समस्या नहीं होगी, क्योंकि संविधान ही देश को चलाने का आधार है।
उन्होंने कहा, संविधान में देश को इंडिया और भारत के रूप में संबोधित किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि मोदी जैसे लोग देश को हिंदुस्तान के रूप में संबोधित करते हैं।
पाशा ने कहा, देश को संबोधित करने का यह प्रकार लोगों के अवचेतन पर सूक्ष्म प्रभाव पैदा करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास हो सकता है। जब तक संविधान ही प्रेरक शक्ति के तौर पर है, तब तक ऐसे संबोधन का उपयोग नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मुसलमानों सहित पिछड़े वर्ग समुदायों की जीवन स्थितियों में शिक्षा के कारण कई गुना सुधार हुआ है।
पाशा ने कहा, शिक्षा मुक्ति का उपकरण है और लोगों को अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए। सरकारी नीतियों को दलितों के उत्थान में मदद करनी चाहिए।
खुद का व्यक्तिगत उदाहरण पेश करते हुए पाशा ने कहा कि उन्हें अपने शैक्षिक करियर के दौरान मेरिट में ही प्रवेश मिला था।
पाशा अपनी बात सीधे तौर पर कहने और विभिन्न मुद्दों पर बेबाकी से अपने विचार रखने के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने कहा, जब मेरे माता-पिता शिक्षक थे, मैं मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण का फायदा नहीं उठा सकता था, क्योंकि आरक्षण परिवार की वित्तीय स्थिति पर आधारित था।