नई दिल्ली। हाल ही में केंद्र सरकार ने जो छोटी बचत योजनाओं पर देय ब्याज दरों में की गई कमी की थी उसे को वापस ले लिया है। लेकिन कहा जा रहा है कि अगली तिमाही में सरकार फिर ऐसा ही फैसला ला सकती है। अगर ऐसा होता है, तो इसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बुजुर्गो पर पड़ेगा। क्योंकि जो ग्रामीण बुजुर्ग हैं वो वर्तमान में भी इन योजनाओं में निवेश करते हैं और इसकी ब्याज आय से जीवन चलाते हैं। एसबीआइ ने इस समूचे तंत्र पर एक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें उनका कहना है कि “देश में बुजुर्गो की आबादी बढ़ते देख सरकार को छोटी बचत योजनाओं को आकर्षक बनाने के लिए कदम उठाने चाहिए।” बता दे कि साल 2011 में देश की आबादी में बुजुर्गो का हिस्सा 8.6 फीसद था जो वर्ष 2041 तक बढ़कर 15.9 फीसद होने की संभावना है।
बुजुर्गों के लिए निवेश की पहली पसंद ये योजनाएं
एसबीआइ की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन राज्यों में प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है वहां कम लोग पोस्ट ऑफिस की बचत योजनाओं में पैसा लगाते हैं। लेकिन बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में 60 वर्ष से ज्यादा आयु के लोगों के लिए निवेश की पहली पसंद ये योजनाएं हैं।
एसबीआइ के तीन सुझाव
छोटी बचत योजनाओं को और भी ज़्यादा आकर्षक बनाने के लिए एसबीआइ ने तीन सुझाव दिए हैं पहला तो वरिष्ठ नागिरकों के लिए जमा योजनाओं पर ब्याज को पूरी तरह से टैक्स-फ्री किया जाए। अभी ब्याज की पूरी राशि पर टैक्स लगाया जाता है। दूसरा, आयु के हिसाब से ब्याज देने की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। अभी बुजुर्गो को ज्यादा ब्याज देने की व्यवस्था है, लेकिन इसमें कई श्रेणियां बनाई जा सकती हैं ताकि ज्यादा आयु होने पर और ज्यादा ब्याज मिलना सुनिश्चत हो। तीसरा सुझाव यह है कि पीपीएफ में न्यूनतम 15 वर्षों तक की लॉक-इन अवधि की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए।