चाणक्य की चाणक्य नीति कहती है कि संस्कार युक्त व्यक्ति पर शिक्षा किसी आभूषण के समान प्रतीत होती है. संस्कार और शिक्षा जिसके पास होती है वह व्यक्ति शत्रुओं के बीच भी सम्मान प्राप्त करता है. श्रीमद्भागवत गीता में भी शिक्षा और संस्कारों के बारे में प्रकाश डाला गया है.
विद्वानों का मत है कि शिक्षा संस्कार के बिना अधूरी प्रतीत होती है. शिक्षा की शोभा संस्कारों से निर्मित होती है. संस्कार व्यक्ति को महान बनाने के लिए प्रेरित करते हैं. शिक्षा और संस्कार की युति व्यक्ति को हर विद्या में परांगत बनाती है. ऐसे व्यक्ति हर चीजों को करने में सक्षम होते हैं इनके लिए कोई भी कार्य कठिन नहीं होता है. ऐसे लोग हर कार्य को बड़ी ही सहजता कर लेते हैं.
शिक्षा और संस्कार व्यक्ति के अहंकार का नाश करती है
शिक्षित और संस्कारों से युक्त विनम्र और सहज होता है. ऐसे लोग अहंकार को नहीं अपनाते हैं. इसी कारण ऐसे लोग हर स्थान पर सम्मान प्राप्त करते हैं. ऐसे लोगों मां लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है. शिक्षा और संस्कार व्यक्ति के आभामंडल को प्रभावशाली बनाती है. समाज में ऐसे लोगों का अनुकरण किया जाता है.
संस्कारवान व्यक्ति सरल होता है
जिस व्यक्ति में संस्कार होते हैं वह सरल होता है. ऐसा व्यक्ति सभी का प्रिय होता है. ऐसे लोगों का यश चारों दिशाओं में फैला होता है. वहीं जब ऐसे लोगों का मां सरस्वती का आर्शीवाद मिल जाता है तो ऐसे लोगों के लिए सीमाओं के बंधन खुल जाते हैं. ऐसे लोगों को हर स्थान पर सम्मान प्राप्त होता है.