
लखनऊ।
दीपावली के बाद लखनऊ का आसमान इस बार कुछ अलग नज़ारा पेश कर रहा है — यहां हवा में न सिर्फ रंग-बिरंगी पतंगें तैर रही हैं, बल्कि सियासत की धार भी उड़ान भर रही है। चौक, हजरतगंज, ठाकुरगंज से लेकर गोमतीनगर और आशियाना तक, हर छत पर “यह काटा — वह काटा” की गूंज है। मगर इस बार पतंगबाज़ी का मज़ा महज़ खेल नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतीक बन गया है।
क्योंकि इन पतंगों पर साधारण डिजाइन नहीं, बल्कि दिग्गज नेताओं — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की तस्वीरें लगी हैं। कुछ पतंगों पर “2027 की तैयारी”, “अबकी बार विकास की उड़ान”, “साइकिल फिर से ऊंची उड़ान पर”, और “डबल इंजन बनाम डबल जिद” जैसे नारे लिखे हैं। शहर का आसमान इस वक्त किसी राजनीतिक अखाड़े जैसा दिख रहा है, जहां सियासी भावनाएं पतंग की डोर से बंधी हैं।

किसी छत से अखिलेश यादव की ‘लाल-साइकिल’ पतंग आसमान में उड़ती दिखती है, तो दूसरी तरफ मोदी की ‘कमल पतंग’ उसे काटने को तैयार रहती है। योगी आदित्यनाथ की ‘भगवा पतंग’ अपने सधे अंदाज़ में आसमान में स्थिर है, जबकि युवा समर्थक शोर मचा रहे हैं — “यह काटा! वह काटा! हमारी पतंग सबसे ऊंची!”

यह नज़ारा सिर्फ खेल का नहीं, बल्कि जनता के मनोभावों का भी प्रतीक बन गया है। चुनावी मौसम भले दूर हो, लेकिन जनता के दिलों में सियासत की पतंगें पहले ही उड़ान भर चुकी हैं। दुकानों पर भी इस बार राजनीतिक पतंगों की धूम है। हजरतगंज, अमीनाबाद और चौक की पतंग मंडियों में मोदी, योगी और अखिलेश की तस्वीरों वाली पतंगें सबसे ज्यादा बिक रही हैं। दुकानदारों का कहना है कि इस बार धार्मिक या फिल्मी सितारों की जगह नेताओं की पतंगों की मांग ज़्यादा रही।

पतंगबाज़ों का कहना है कि यह बस मनोरंजन नहीं, बल्कि एक तरह की सॉफ्ट सियासत है। जैसे-जैसे पतंग ऊपर जाती है, लोग अपने पसंदीदा नेता के साथ “हमारी पतंग सबसे मजबूत” का नारा लगाने लगते हैं। सोशल मीडिया पर भी इन तस्वीरों की भरमार है। एक तस्वीर में एक बच्चे ने मोदी की पतंग उड़ाते हुए लिखा — “अबकी बार ऊंची उड़ान वाली पतंग”, तो दूसरे ने अखिलेश की पतंग के साथ लिखा — “हवा बदल रही है”।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि लखनऊ की यह “पतंग राजनीति” जनता के मूड का हल्का-फुल्का लेकिन अहम संकेत देती है। चुनावी गर्माहट से पहले लोगों ने अपने-अपने पसंदीदा नेताओं को पतंग के रूप में आसमान में उड़ाकर एक तरह से समर्थन और प्रतिद्वंद्विता दोनों को व्यक्त किया है। कुछ जगहों पर बच्चों और युवाओं ने योगी और अखिलेश की पतंगों की “मैत्री उड़ान” भी भरी, मानो कहना चाह रहे हों कि मुकाबला भले हो, आसमान सबका एक है।
इस बीच, प्रशासन ने भी लोगों से अपील की है कि वे छतों पर सुरक्षित पतंगबाज़ी करें और धातु की डोर का इस्तेमाल न करें। मगर राजनीतिक जोश ऐसा है कि लोग नेताओं की तस्वीरों वाली पतंगों को हवा में उड़ाने से खुद को रोक नहीं पा रहे।
लखनऊ का यह पतंग पर्व यह भी दिखा रहा है कि राजनीति अब सिर्फ मंचों पर नहीं, बल्कि जनता की छतों और आसमानों तक पहुंच चुकी है। हवा के साथ अब विचार उड़ते हैं, और डोर के साथ उम्मीदें बंधी हैं।
दीपावली के बाद का यह दृश्य मानो यह कह रहा है —
“सियासत की डोरें अब जनता के हाथ में हैं, हवा के रुख से तय होगा कौन-सी पतंग टिकेगी आसमान में, और कौन होगी ‘कटी पतंग’!”