क्रांति की सवारी’: 200 किमी/लीटर माइलेज वाली बाइक बनाई, अब फंड के मोड़ पर थमी उड़ान

प्रयागराज के लाल ने कर दिया कमाल

प्रयागराज।अगर जुनून साधनों की सीमाओं को चुनौती देने लगे, तो इतिहास बनता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है प्रयागराज के शैलेंद्र सिंह गौर ने। उन्होंने एक ऐसा इंजन विकसित किया है जो एक लीटर पेट्रोल में 176 से 200 किलोमीटर तक की दूरी तय करने में सक्षम है। यह तकनीक अगर व्यावसायिक रूप से विकसित हो पाई तो न सिर्फ भारत में, बल्कि वैश्विक ऑटोमोबाइल उद्योग में एक क्रांति ला सकती है।

शैलेंद्र सिंह गौर ने अमर भारती से विशेष बातचीत में अपनी इस खोज की यात्रा साझा करते हुए बताया कि उन्होंने इस तकनीक पर काम करते-करते 18 वर्ष से अधिक समय दे दिया। “यह सिर्फ एक आविष्कार नहीं, बल्कि मेरा जीवन है,” उन्होंने कहा। इस दौरान उन्होंने हर सुविधा, हर आराम और लगभग सारी जमा पूंजी इस शोध में समर्पित कर दी। एक छोटे से किराए के घर को ही उन्होंने प्रयोगशाला में बदल दिया, जहां से यह काम आगे बढ़ता रहा।

एक इंजन जो बदल सकता है देश का माइलेज भविष्य

गौर द्वारा विकसित यह इंजन पारंपरिक इंजनों से कहीं अधिक ऊर्जा दक्ष है। जहाँ परंपरागत पेट्रोल इंजन केवल 30-40% ऊर्जा का उपयोग करते हैं और बाकी गर्मी व अपशिष्ट के रूप में व्यर्थ जाती है, वहीं गौर के अनुसार उनका इंजन 70% से अधिक ऊर्जा का उपयोग करता है। यही वजह है कि माइलेज में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज की गई।

TVS स्पोर्ट स्टार 100cc (2017 मॉडल) पर किए गए परीक्षण में एक लीटर पेट्रोल में 176 किमी की दूरी तय हुई। इसके अतिरिक्त, मात्र 50 मिली पेट्रोल में बाइक 35 मिनट तक आइडल मोड पर लगातार चलती रही, जबकि स्टॉक इंजन में यही बाइक केवल 12 मिनट 40 सेकंड तक ही चल पाती थी।

गौर ने इस तुलना को मजबूत करने के लिए एक अनमोडिफाइड TVS बाइक (2018 मॉडल) पर भी परीक्षण किया। 50 मिली पेट्रोल में वह बाइक 12 मिनट 28 सेकंड तक चली। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह परीक्षण फर्क दिखाने के लिए था। यह बाइक आमतौर पर 70 किमी/लीटर का औसत देती है। इसी औसत के आधार पर उनका दावा है कि फाइन-ट्यूनिंग और प्रोफेशनल लैब डेवलपमेंट के बाद यह इंजन 200 किमी/लीटर तक का माइलेज देने में सक्षम हो सकता है।

कम लागत, बहुउपयोगी और पर्यावरण हितैषी तकनीक

यह इंजन केवल माइलेज ही नहीं बढ़ाता, बल्कि पेट्रोल, डीज़ल, CNG और बायोफ्यूल जैसे विभिन्न ईंधनों पर भी काम कर सकता है। शैलेंद्र सिंह गौर ने बताया कि इसका रखरखाव भी आसान है और पारंपरिक इंजनों की तुलना में निर्माण लागत कम है। इसके अलावा इंजन की कार्यशैली पर्यावरण के लिहाज से भी ज्यादा अनुकूल है। कम अधजली गैस उत्सर्जन के कारण यह वातावरण में प्रदूषण को कम करता है और कार्बन फुटप्रिंट घटाता है।

दो पेटेंट हासिल, कई और प्रक्रियाधीन

इस तकनीक को वैज्ञानिक मान्यता भी मिल चुकी है। गौर को अब तक दो पेटेंट मिल चुके हैं — एक इंजन की कार्यप्रणाली के लिए और दूसरा उसकी संरचना पर आधारित है। इसके अतिरिक्त कई अन्य पेटेंट आवेदन भी प्रक्रियाधीन हैं। गौर ने यह पूरा काम बिना किसी विशेष तकनीकी टीम या बड़ी लैब के खुद ही अंजाम दिया है। उन्होंने पेटेंट प्रक्रिया से लेकर तकनीकी दस्तावेज़ तक सब कुछ स्वयं तैयार किया।

बड़ी चुनौती: आर्थिक सहयोग का अभाव

हालांकि तकनीकी सफलता मिल चुकी है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती वित्तीय संसाधन और उद्योग से जुड़ाव की है। अमर भारती से बातचीत में उन्होंने यह भी कहा,

“मेरे पास तकनीक है, आंकड़े हैं, पेटेंट हैं, लेकिन इसे आम लोगों तक पहुंचाने के लिए संसाधनों और बड़े स्तर पर समर्थन की आवश्यकता है। कई संस्थानों से संपर्क किया, मगर ठोस सहायता कहीं से नहीं मिली।”

उन्होंने बताया कि कई सरकारी, निजी और विज्ञान संस्थानों को डेमो दिया गया, लेकिन कुछ ने चुप्पी साध ली तो कुछ ने प्रतिक्रिया ही नहीं दी।

“हमारे जैसे लोग सब कुछ करके भी दरवाज़ों पर खटखटाने को मजबूर हैं,” गौर ने कहा।

भारत की छिपी प्रतिभा और आत्मनिर्भरता की मिसाल

गौर की यह यात्रा केवल तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी प्रेरणादायक है। उन्होंने यह सिद्ध किया है कि ग्रामीण भारत की मिट्टी में भी वो ताकत है, जो देश की दिशा और दशा बदल सकती है। ऐसे समय में जब ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे कार्यक्रम चल रहे हैं, तब इस तकनीक को उपेक्षा में छोड़ना कहीं से भी न्यायसंगत नहीं होगा।

प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में बड़ा कदम

इस इंजन की एक बड़ी खूबी यह है कि यह वातावरण में ध्वनि और गैस प्रदूषण को कम करता है। पारंपरिक इंजन की तुलना में यह तकनीक कम CO2 और NOx उत्सर्जित करती है। गौर मानते हैं कि यदि यह तकनीक व्यापक स्तर पर लागू हो, तो भारत के शहरी इलाकों में वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।

मांग: सरकार, निवेशक और वैज्ञानिक समुदाय आगे आएं

अमर भारती से बातचीत में उन्होंने यह भी अपील की कि

“मैंने अपना जीवन इस तकनीक को देने में झोंक दिया। अब ज़रूरत है कि सरकार, नीति-निर्माता, स्टार्टअप इनक्यूबेटर और निवेशक साथ आएं। हम मिलकर भारत को माइलेज, ऊर्जा और पर्यावरण की दिशा में आत्मनिर्भर बना सकते हैं।”

गौर ने यह भी कहा कि अगर उन्हें 2-3 करोड़ रुपये की रिसर्च और प्रोसेसिंग फंडिंग मिल जाए, तो 1 साल के भीतर यह तकनीक बाजार में उतारी जा सकती है।

एक साधारण वर्कशॉप से निकली असाधारण क्रांति

शैलेंद्र सिंह गौर की कहानी हमें बताती है कि नवाचार केवल कॉरपोरेट लैब्स या विदेशों की देन नहीं है। प्रयागराज की एक वर्कशॉप में बैठा एक जुनूनी मस्तिष्क भी वह कर सकता है जो पूरी दुनिया को हैरान कर दे।

अब यह सरकार, समाज और औद्योगिक जगत की जिम्मेदारी है कि वे इस ‘क्रांति की सवारी’ को थमने न दें, बल्कि इसे उड़ान दें। क्योंकि इस बार क्रांति सिलिकॉन वैली से नहीं, प्रयागराज की मिट्टी से आई है।