माता-पिता पृथ्वी के साक्षात देवता, उनकी सेवा ही सबसे बड़ा धर्म – आचार्य सत्यम जी महाराज

रामनगर। श्रीमद् भागवत कथा के विश्राम दिवस पर कथा आचार्य सत्यम जी महाराज ने कहा कि जैसे देवता स्वर्ग में पूजनीय हैं, वैसे ही माता-पिता इस पृथ्वी पर साक्षात देवता के समान हैं। उनके चरणों में ही समस्त तीर्थों का वास है और उनकी सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने कहा कि जो संतान अपने माता-पिता की सच्चे मन से सेवा करती है, उसका जीवन स्वतः ही सफल और मंगलमय हो जाता है।

आचार्य सत्यम जी महाराज ने समाज से आह्वान किया कि माता-पिता को वृद्धाश्रम नहीं, बल्कि अपने हृदय में स्थान दें। उन्होंने कहा कि “माता-पिता के त्याग और स्नेह का ऋण कोई चुका नहीं सकता, परंतु उनकी सेवा कर हम उनके प्रति अपनी श्रद्धा अवश्य व्यक्त कर सकते हैं।” उनके इस संदेश से पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु भावुक हो उठे।

कथा के दौरान जब सुदामा चरित्र का प्रवचन हुआ और उसका मंचन किया गया, तो श्रोताओं की आंखें नम हो गईं। आचार्य जी ने कहा कि सच्ची मित्रता वही होती है जिसमें प्रेम और भक्ति का आदान-प्रदान हो, स्वार्थ का नहीं। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता इस बात का प्रतीक है कि सच्चा प्रेम केवल त्याग और विश्वास से फलता-फूलता है।

राजा परीक्षित के मोह प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्य जी ने कहा कि मनुष्य का सबसे बड़ा बंधन उसका मोह है। जब तक मनुष्य संसार के आकर्षणों में बंधा रहेगा, तब तक उसे सच्चा विश्राम नहीं मिल सकता। भागवत कथा का उद्देश्य इसी मोह से मुक्ति दिलाना और ईश्वर के चरणों में स्थायी शांति प्राप्त कराना है।

कथा के समापन पर आचार्य सत्यम जी महाराज ने सभी श्रद्धालुओं और सहयोगियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि “भागवत कथा केवल सुनने का नहीं, बल्कि जीवन में उतारने का माध्यम है। जब हम अपने कर्मों में ईश्वर की भावना जोड़ लेते हैं, तभी जीवन सार्थक होता है।”

इस अवसर पर पूर्व चेयरमैन बद्री विशाल त्रिपाठी, अरुण कुमार रावत, अवधेश शुक्ला, बिनय मिश्रा, कृष्ण दत्त, राम सजीवन, इंद्र मणि, शेखर ह्यारण प्रमुख और आशीष सिंह पूर्व प्रमुख सहित अनेक भक्तगण उपस्थित रहे। कथा स्थल पर पूरे दिन भक्ति और श्रद्धा का वातावरण बना रहा।