
रामनगर (बाराबंकी)। जब-जब धरा पर पापाचार और अत्याचार बढ़ता है, जब आसुरी शक्तियाँ भक्तों को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करती हैं, तब-तब भगवान स्वयं अवतरित होकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। यह दिव्य संदेश मथुरा-वृंदावन से पधारे बाल शुक सत्यम जी महाराज ने कस्बे के मोहल्ला धमेडी चार निवासी आशीष उपाध्याय के आवास पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन प्रवचन के दौरान दिया।
महाराज ने परीक्षित के जन्म की कथा सुनाते हुए कहा कि जब अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुए, तब उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ में पांडव वंश का अंतिम वारिस पल रहा था। अश्वत्थामा ने उस गर्भस्थ शिशु को नष्ट करने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ा, परंतु भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गर्भ में जाकर उस बालक की रक्षा करते हैं। उसी दिव्य रक्षा के कारण उसका नाम परीक्षित रखा गया।
उन्होंने बताया कि जन्म के समय बालक के शरीर से दिव्य आभा प्रकट हुई और उसने हाथों को इस प्रकार हिलाया मानो भगवान की कृपा उस पर बरस रही हो। गर्भ में ही श्रीकृष्ण के दर्शन करने के कारण परीक्षित जन्म से ही भगवान के स्वरूप के अनुसंधान में रमे रहते थे। आगे चलकर वे पांडवों के उत्तराधिकारी और हस्तिनापुर के राजा बने। उनके पौत्र जनमेजय ने महाभारत कथा का श्रवण किया, और उन्हीं की शंकाओं से श्रीमद्भागवत महापुराण का प्राकटीकरण हुआ।
महाराज ने कहा कि कलियुग में भागवत संकीर्तन ही जीवों के उद्धार का एकमात्र माध्यम है। कथा स्थल पर भक्तों की भीड़ रही। इस अवसर पर मीनाक्षी देवी, संत कुमार, निशा, उषा, डॉ. अखिलेश, इंद्रमणि श्याम, अभिषेक, ऋषभ, गौरव, महेश और राज बहादुर सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।