लद्दाख सीमा पर तनाव के बीच भारत सरकार ने धोखबाज चीन के खिलाफ ‘तीसरी डिजिटल स्ट्राइक’ की है। देश में लोकप्रिय पबजी समेत 118 मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगाकर ड्रैगन को एक और तगड़ा झटका दिया है। सरकार ने अपनी इस कार्रवाई के पीछे चाइनीज ऐप्स से भारत की सुरक्षा और सम्प्रभुता पर खतरा बताया है।
गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के हाथों मार खाने के बाद ऐसा लग रहा था कि चीन सबक लेगा लेकिन पैंगोंग झील के इलाके में उसकी आक्रामक कार्रवाई से यही प्रतीत होता है कि उसक नीयत में खोट है। हालांकि चीन इस बार अपने मंसूबे में विफल रहा और भारतीय सैनिकों ने रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ठिकानों को अपने कब्जे में ले लिया।
इससे इस इलाके में भारत को न केवल सामरिक दृष्टि से बढ़त हासिल होगी, बल्कि मौजूदा विवाद में सौदेबाजी की ताकत भी बढ़ेगी। जाहिर है चीन दबाव में होगा। घटना के उपरांत चीनी सत्ता प्रतिष्ठान के विभिन्न अंगों द्वारा बारम्बार दिए जाने वाले बयानों से यह स्पष्ट है। अब क्षेत्र में शांति चीन के भावी रुख पर निर्भर करेगा, लेकिन तिलिमिलाया चीन क्या करेगा, अभी अटकलबाजी का विषय है। इस बीच दोनों देशों की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैनिक जमावड़ा किया जा चुका है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर छेड़छाड़ करके उल्टे भारत को अतिक्रमणकारी बताता चला आ रहा चीन अब यथास्थिति बनाए रखने का राग अलाप रहा है। यह मक्कारी ही है, क्योंकि बीते तीन-चार माह से सीमा पर यथास्थिति बनाए रखने के भारत के आग्रह को वह एक कान से सुनकर दूसरे से निकालने में लगा हुआ था।
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इस बारे में उससे कम से कम एक दर्जन बार बात हुई, लेकिन वह कुल मिलाकर धूर्तता का ही परिचय देता रहा। चीन की ओर से यह कहा जाना तो शरारत की पराकाष्ठा है कि उसने कभी किसी देश की एक इंच जमीन नहीं कब्जाई है।
तिब्बत को हड़पने, 1962 के युद्ध में भारत के एक बड़े भूभाग पर कब्जा जमाने और दक्षिण चीन सागर में बेशर्मी से दावा करने के साथ अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को धता बताने वाला देश आखिर किस मुंह से यह कह रहा है कि उसने कभी किसी की जमीन पर कब्जा नहीं किया? यदि दुनिया किसी देश की निर्लज्ज विस्तारवादी नीति से त्रस्त है, तो वह चीन ही है।
यह भी चीन ही है, जो उत्तर कोरिया और पाकिस्तान के रूप में दुनिया के सबसे बिगड़ैल देशों का संरक्षक बनने में गर्व का अनुभव करता है। चीन शांति की बातें तो करता है, लेकिन हर किसी को और यहां तक कि अपने ही लोगों को धोखा देता है।
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हांगकांग इसका ताजा उदाहरण है। बुरी नीयत वाले चीन का इलाज यही है कि वह जब तक अपने कहे पर अमल करके न दिखाए, तब तक उसकी किसी बात पर रत्ती भर भी भरोसा न किया जाए। अब अमेरिका को भी अहसास हो गया है कि भारत के बिना हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की सत्ता को चुनौती देना आसान नहीं होगा।
यूएस-इंडिया स्टेटेजिक फोरम में अमेरिकी उप विदेश मंत्री स्टीफन बेगुन ने यहां तक कह दिया कि अमेरिका की रणनीति हर मोर्चे पर चीन को पीछे धकेलने की है। इसी पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन शुरू होने जा रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि वहां चीन की विस्तारवादी नीति पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सवाल उठता है, या नहीं।