देवनाथ
नई दिल्ली। एक दिन पूर्व यानी कल रामविलास पासवान की जयंती थी। रामविलास पासवान, राजनीति की एक ऐसी सख्शियत, जिसने कई सरकारों में साझेदारी की और लगभग हर बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में इनकी ताजपोशी हुई। लेकिन, पासवान के राजनीतिक जीवन का सफ़र आसान नहीं रहा। कई बार किसी से तल्ख़ी हुई तो किसी से गलबाहें फैला कर एक-दूसरे के साथ हो लिए। आज हम रामविलास पासवान और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के एक किस्से को आपसे साझा करने जा रहे हैं। तो आइए, शुरू करते हैं, “किस्सा अनसुना सा…”
जब संजय ने की रामविलास पर व्यंगपूर्ण टिप्पणी
यह बात सन 1980 की है। संसद का बजट सत्र जारी था। आपातकाल के बाद, इंदिरा गांधी की नई-नई सरकार बनी थी और यह इस सरकार का पहला ही सत्र था। इसी दौरान, एक दिन लोकदल के सांसद रामविलास पासवान सदन में बोल रहे थे। उसी वक़्त, पहली बार सांसद बने संजय गांधी उन्हें लोकसभा चुनाव में मिले सबक को याद दिलाते हुए कुछ व्यंगात्मक टिप्पणी कर देते हैं।
पासवान बोले, “कहाँ फरियाना है?”
संजय गांधी की बात सुनते ही रामविलास पासवान का पारा चढ़ गया और कहा, “ऐ संजय गांधी, हम 1969 में विधायक बने थे और अब दूसरी बार लोकसभा में आया हूं। इसलिए, मुझसे तमीज़ से बात करो। मैं बेलछी में नही बल्कि देश की संसद में बोल रहा हूं और यहां रंगबाज़ी नही चलेगी और अगर रंगबाज़ी ही करनी है तो बताओ, कहां फरियाना है – चांदनी चौक में या कनाॅट प्लेस में?”
बीच-बराव में उतरीं इंदिरा
लोकसभा में अचानक सियासी तापमान बढ़ चुका था। दोनों तरफ से मामला गर्म हो उठा। उसी बीच, इंदिरा गांधी बोलीं, “रामविलास जी, आप वरिष्ठ हैं, इसलिए संजय गांधी को माफ कर दीजिए। संजय तो ‘न्यूकमर’ है और उसे अभी संसदीय परंपराओं के बारे में बहुत कुछ सीखना है।”
इस घटना के बाद लंच ऑवर होता है। इन्दिरा गांधी दोनों (संजय और रामविलास) को एक दूसरे से मिलवाती हैं और गिले-शिकवे दूर कराती हैं।