नियम विरुद्ध है सुभाष की पदोन्नति, जांच का विषय

कुशीनगर। उच्च न्यायालय के आदेशों को दरकिनार कर जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) कार्यालय में बिना सृजित पद के पदोन्नति पाना अब जांच का विषय बन गया है। वरिष्ठ लिपिक सुभाष प्रसाद यादव की पदोन्नति को जानकारों ने नियम विरुद्ध और प्रशासनिक अनियमितता का उदाहरण बताया है।

जानकारों का तर्क है कि जब डीआईओएस कार्यालय में वरिष्ठ लिपिक का पद ही सृजित नहीं है, तो फिर वहां तैनात कनिष्ठ लिपिक रहे सुभाष यादव को उसी कार्यालय में वरिष्ठ लिपिक के पद पर पदोन्नत करना नियमों के खिलाफ है।

🔹 मामला क्या है

जनपद सृजन के बाद डीआईओएस कार्यालय, कुशीनगर में कुल नौ पद सृजित हैं, जिनमें डीआईओएस, लेखाधिकारी, एक आशुलिपिक, एक लेखाकार, एक कनिष्ठ लिपिक, एक दफ्तरी, एक अर्दली, एक चालक और एक चपरासी का पद शामिल है।
वर्ष 2021 में सुभाष प्रसाद यादव को डायट, कुशीनगर से कनिष्ठ सहायक के रूप में स्थानांतरित किया गया था। उन्होंने 26 जुलाई 2021 को डीआईओएस कार्यालय में कार्यभार ग्रहण किया। इसके बाद सिर्फ 14 महीने के भीतर, यानी 14 अक्टूबर 2022 को उन्हें उसी कार्यालय में वरिष्ठ सहायक पद पर पदोन्नत कर दिया गया, जबकि यह पद सृजित ही नहीं था।

🔹 विशेषज्ञों ने उठाया सवाल

माध्यमिक शिक्षा के विशेषज्ञों का कहना है कि —

“जहां पद सृजित न हो, वहां पदोन्नति नहीं दी जा सकती। यह पूर्णतः नियम विरुद्ध है।”

वहीं विधि विशेषज्ञों का मानना है कि सुभाष यादव की पदोन्नति अवैध प्रक्रिया से की गई है। अगर निष्पक्ष जांच हुई तो सारा सच सामने आ जाएगा।

🔹 तीन साल से ले रहे वरिष्ठ सहायक का वेतन

जानकारों के अनुसार अगर यह पदोन्नति अवैध है, तो पिछले तीन वर्षों से सुभाष यादव द्वारा वरिष्ठ सहायक का वेतन प्राप्त करना भी जांच के घेरे में आ सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, सुभाष यादव ने अपनी नौकरी की शुरुआत चपरासी के पद से की थी, और 26 वर्षों के लंबे कार्यकाल में वे अधिकतर समय कुशीनगर जनपद में ही तैनात रहे हैं। शासनादेश के अनुसार किसी कर्मचारी को एक पटल पर तीन वर्ष और जनपद में पांच वर्ष से अधिक नहीं रहना चाहिए। इस लिहाज से सुभाष यादव का इतने वर्षों से एक ही जिले में बने रहना भी नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है।

🔹 मंडल स्तर पर भी सवाल

सूत्रों ने यह भी बताया कि सुभाष की पदोन्नति के समय गोरखपुर मंडल में आधा दर्जन कनिष्ठ सहायकों को पदोन्नत किया गया था, जिनमें से अधिकांश पद बिना सृजन के नियम विरुद्ध तरीके से स्वीकृत किए गए हैं। यह समूचा मामला अब जांच की मांग कर रहा है।