MCD: एक तरफ़ हम सबको स्वच्छ भारत का सपना दिखाया जाता है. वहीं दूसरी तरफ़ वही सफाई कर्मचारी, जो इस सपने को साकार करते हैं, खुद अपनी ज़िंदगी के अंधेरे से बाहर नहीं निकल पा रहे। लगातार 16-16 घंटे ड्यूटी, बकाया डीए और वेतन, वर्दी का पैसा न मिलना, पेंशन केसों में देरी और भ्रष्टाचार के आरोप कर्मचारियों ने अपनी कोई समस्याएँ सामने रखी हैं, कि क्यों सफाई कर्मचारी आज भी अपने हक़ के लिए सड़कों से लेकर दफ्तरों तक आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। शहर की सड़कों को चमकाने वाले सफाई कर्मचारी लेकिन इनकी ज़िंदगी धुंधली हो गई है।
MCD: शहर साफ़, पर कर्मचारियों का हक़ गंदगी में
सबसे बड़ी शिकायत है 16-16 घंटे की लगातार ड्यूटी। दिन-रात काम करने वाले कर्मचारी अब थक चुके हैं।नतीजा , मानसिक तनाव, हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज और डायबिटीज जैसी बीमारियों की चपेट में ये लोग आ रहे हैं। सवाल उठता है क्या कर्मचारियों की सेहत की कोई कीमत नहीं, दूसरा दर्द है , बकाया डीए और वर्दी, साल 2021 से यह पास तो हो चुका है लेकिन आज तक कर्मचारियों के खाते में पैसे नहीं पहुंचे। कच्चे कर्मचारियों का बढ़ा हुआ वेतन भी अटका पड़ा है।
कर्मचारी पूछ रहे हैं, जब सरकार आदेश देती है तो फिर पैसे क्यों नहीं आते, इसके साथ ही यूनिफॉर्म का मुद्दा भी बड़ा है।
साल 2016 के बाद न तो कर्मचारियों को वर्दी मिली और न ही उसका भत्ता। मजबूरी में ये कर्मचारी पुराने कपड़ों में ही ड्यूटी करते हैं जबकि नियम कहता है कि हर साल यूनिफॉर्म और उसका पैसा मिलना चाहिए, यहाँ तक की इन्हे झाड़ू नहीं mcd की तरफ से नहीं मिलता, इन्हे अपने पैसे से ही लेना होता है
इस बीच परिवार आर्थिक संकट में फंस जाता है। यह सवाल सिर्फ़ सिस्टम की लापरवाही नहीं बल्कि मानवीय संवेदनाओं की भी अनदेखी है। कर्मचारियों का कहना है कि फाइलों पर अनावश्यक आपत्तियाँ लगाई जाती हैं ताकि रिश्वत ली जा सके, भ्रष्टाचार के आरोपियों पर कार्रवाई की जगह उन्हें बचाया जा रहा है। कर्मचारियों की सबसे बड़ी मांगों में से एक है 240 हाजिरी पूरी करने वाले सभी कच्चे कर्मचारियों को पक्का किया जाए।
सालों से मेहनत करने वाले अस्थायी कर्मचारी स्थायी होने का इंतज़ार कर रहे हैं। क्या शहर को चमकाने वाले कर्मचारियों का दर्द सुनने वाला कोई है, क्या उनकी मांगें सिर्फ़ फाइलों में दबकर रह जाएँगी या फिर सिस्टम जागेगा, कर्मचारियों का कहना है , अगर उनकी आवाज़ नहीं सुनी गई तो उन्हें सड़कों पर उतरकर अपना हक़ लेना पड़ेगा। शहर साफ़ हो सकता है, लेकिन जब तक कर्मचारियों की ज़िंदगी की गंदगी नहीं हटेगी तब तक असली स्वच्छ भारत अधूरा रहेगा।
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