चाणक्य की चाणक्य नीति और गीता उपदेश का सार यही है कि व्यक्ति को महान और सफल बनाना है तो अच्छे गुणों को विकसित करना होगा. व्यक्ति सफल होने के लिए जब विकल्प तलाशने लगता है तो वह स्वयं से दूर हो जाता है. अपने आसपास होने वाली कई अच्छी और मौलिक चीजों का वह आनंद नहीं उठा पाता है.
गीता के उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है. महान बनने के लिए मनुष्य को परिश्रम करना पड़ता है और परिश्रम का कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है. परिश्रम के साथ व्यक्ति को कुछ और गुणों को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए. इन्ही गुणों में से दो गुणों पर बात करते हैं. इन गुणों को विकसित करने के लिए व्यक्ति को अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता है.
वाणी को मधुर बनाएं
चाणक्य के अनुसार मधुर बोलने वाले व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं. विद्वानों का भी मत है कि वाणी में यदि मधुरता नहीं है तो भाषा का सौदंर्य निखर कर नहीं आता है. जिन लोगों की वाणी कर्कश और मधुर नहीं होती है उनसे लोग दूरी बना लेते हैं. वहीं मधुर वाणी बोलने वाले व्यक्ति की डांट को भी लोग सहजता से स्वीकार्य कर लेते हैं. जीवन की सफलता में वाणी का भी प्रमुख योगदान है. वाणी ऐसी होनी चाहिए जो लोगों के दिल में प्रवेश कर जाए. जो इस गुण को अपने भीतर विकसित कर लेते हैं वे लोगों को बहुत जल्दी अपना बना लेते हैं.
विनम्रता श्रेष्ठ गुण हैं
पौराणिक ग्रंथों में मनुष्य के गुणों का जब वर्णन आता है तो उसमें विनम्रता का वर्णन आता है. व्यक्ति जितना सहज और सरल होगा उसके भीतर उतनी ही विनम्रता होती है. संतों के अचारण में विनम्रता होती है, जिस कारण उन्हें देखकर ही मन को शांति मिलती है. विनम्रता ज्ञान, संस्कार और सत्य बोलने से आती है. विनम्र व्यक्ति शत्रु को भी मित्र बनाने की क्षमता रखता है. ऐसे लोगों को लक्ष्मी जी का भी आर्शीवाद प्राप्त होता है.