चाणक्य का मानना था कि व्यक्ति को सफल होने के लिए बहुत अधिक विशेष गुणों की आवश्यकता नहीं होती है. व्यक्ति कभी कभी एक गुण से ही सफलता प्राप्त कर सकता है. चाणक्य के अनुसार एक श्रेष्ठ गुण ही व्यक्ति को बुलंदी पर पहुंचा सकता है.
एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगंधिना।
वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा।
चाणक्य के इस श्लोक का अर्थ है कि गुणवान व्यक्ति अपने एक गुण से ही सभी के बीच अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहता है. वह एक गुण की उसकी संपूर्ण पहचान बन जाता है. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह से संपूर्ण वन में सुंदर फूलों वाला एक पौधा ही अपनी सुगंध से पूरे वन को सुंगधित कर सकता है. ठीक उसी तरह से एक सुपुत्र ही पूरे कुल का नाम रोशन करने के लिए काफी होता है.
एकेन शुष्कवृक्षेण दह्ममानेन वहिृना।
दह्मते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा।
चाणक्य नीति के इस श्लोक का भाव ये है कि जिस प्रकार से जंगल में सूखे वृक्ष में आग लगने से संपूर्ण वन जलकर भस्म हो जाता है, उसी प्रकार कुपुत्र पैदा होने पर पूरा कुल नष्ट हो जाता है और अपयश की प्राप्ति होती है. चाणक्य की इन दोनों ही बातों का अर्थ ये भी है कि गुण से युक्त व्यक्ति सम्मान पाता है और अवगुण धारण करने वाला व्यक्ति अपयश दिलाने का कार्य करता है. इसलिए गुणवान बनाना चाहिए.