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समाधिस्थ हुआ वागड़ के धार्मिकपटल का सूर्य- Amar Bharti Media Group धर्म

समाधिस्थ हुआ वागड़ के धार्मिकपटल का सूर्य

फोटो- समाधिस्थ आचार्य श्री रयण सागर जी महाराज
  • जैन धर्म के रत्न, आचार्य श्री रयण सागर जी गुरूराज का उत्तम समाधिमरण

आनंदपुर/नई दिल्ली । अभय जैन ।। आचार्य श्री रयण सागर जी महाराज का वर्ष 2020 का वर्षायोग आनंदपुर कालू नगरी में हो रहा था। विगत सप्ताह से आचार्य श्री का स्वास्थ्य अत्यंत रुग्ण था। समाज के द्वारा उपचार के प्रयास पर मजबूत मनोबल के धारी गुरुवर ने समस्त उपचार हेतु मना करते हुए कहा कि दीक्षा के 42 साल हो गए हैं और शरीर की आयु 66 वर्ष इसलिए अब समाधि ही उत्तम उपचार है। इस प्रकार आचार्य श्री पिछले दिन से समताभाव व भेद विज्ञान पूर्वक स्वआत्म, धर्म ध्यान में दृढ़ होकर समाधि हेतु तत्पर हो गए।

जैन धर्म के रत्न आचार्य श्री रयण सागर जी महाराज का दिनांक 22 नवम्बर की मध्य रात्रि में उत्तम ध्यान परिणामों के साथ उत्तम समाधिमरण हुआ। आचार्य श्री के उत्तम समाधिमरण के समाचार को सुनकर सम्पूर्ण जैन समाज में शोक की लहर व्याप्त हो गई।

जानते हैं महागुरु का संक्षिप्त जीवन परिचय

राजस्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरी सागवाड़ा निवासी दशा हुमड़ जैन समाज के छगनलाल जी व रुक्मणि गांधी जी के घर दिनांक 5 जुलाई 1955 गुरुपूर्णिमा के पावन दिन एक दिव्य बालक का जन्म हुआ। जिसका नाम माता-पिता ने बड़े प्यार से आनन्द रखा।

खेल-कूद में मस्त रहने वाले युवा आनन्द पर आचार्य श्री पाश्‍र्वसागर जी महाराज, आचार्य श्री दयासागर जी महाराज व आचार्य श्री अभिनंदन सागर जी महाराज की साधना का गहरा प्रभाव पड़ा।

आचार्य विद्यासागर महाराज जी सड़क दुर्घटना से बचे बाल-बाल

युवा आनन्द आचार्य श्री दयासागर जी महाराज के पावन सानिध्य में धर्म मार्ग पर दृढ़ होने लगे। आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार करने के पश्चात महाराष्ट्र की औरंगाबाद नगरी में 7 फरवरी 1979 को आचार्य श्री दयासागर जी महाराज ने अपने पावन हस्त कमलों से युवा आनन्द को मुनि दीक्षा प्रदान कर मुनि श्री रयणसागर जी महाराज का नाम दिया।

आपकी योग्यता को जानकर अनेक गुरुओं के अनुमोदन पूर्वक सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी जी में 9 मई 1998 को अनेक साधुओं की उपस्थिति में आपको आचार्य पद पर सुशोभित किया गया। आपके द्वारा अनेक दीक्षाएं, पंचकल्याणक व तीर्थ उद्धार हुए, जिसमें सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी जी के प्राचीन जिनालय जीर्णोद्धार का प्रत्येक पत्थर साक्षी है।

 आचार्य श्री के द्वारा उपाध्याय मुनि श्री मंयक सागर जी महाराज, उपाध्याय मुनि श्री मनोज्ञसागर जी महाराज, मुनि श्री अमय सागर जी महाराज, मुनि श्री अजेय सागर जी महाराज सहित अनेक रत्न तराशकर धर्म प्रभावना के लिए समाज को समर्पित किए गए।

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 42 वर्षों से साधनारत गुरुवर का सभी साधर्मी साधकों के साथ असीम स्नेह सम्बन्ध था। इसी वजह से आचार्य श्री ने अपने संघ सहित अनेक आचार्यों के साथ प्रवास व वर्षायोग सम्पन्न किए। हाल ही में आचार्य श्री ने मारवाड़ क्षेत्र जहां दिगम्बर जैन सम्प्रदाय नगण्य है वहां पर भी दिगम्बरत्व के रूप में जैन धर्म का डंका बजाया।

परम-पूज्य, धर्मालंकार आचार्य श्री रयणसागर जी गुरूराज के श्री चरणों में समस्त कनकनन्दी-सुनील सागर भक्त परिवार के साथ-साथ अमर भारती मीडिया समूह की कोटिश: नमन पूर्वक हार्दिक श्रद्धाजंलि।