Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wp-statistics domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the 3d-flip-book domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the updraftplus domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the wordpress-seo domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/ekumjjfz/amarbharti.com/wp-includes/functions.php on line 6114
आने वाला कोई तूफ़ान है : भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया सिस्टम, आने वाले तूफानों की होगी अग्रिम सटीक जानकारी- Amar Bharti Media Group राष्ट्रीय

आने वाला कोई तूफ़ान है : भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया सिस्टम, आने वाले तूफानों की होगी अग्रिम सटीक जानकारी

नई दिल्ली। भारत के आपदा प्रबंधन तंत्र को और अधिक मजबूती प्रदान करने की दिशा में निरंतर प्रयास जारी है। इसका अंदाजा बड़ी ही आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल, आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में आजादी के समय से लेकर यदि वर्तमान स्थिति की तुलना की जाए तो इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती ताकत का अनुमान लगाया जा सकता है। अब इस दिशा में भारत ने एक और कदम आगे बढ़ाया है।

भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार की तकनीक

भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सटीक तकनीक तैयार की है, जो उत्तर हिन्द महासागर क्षेत्र के ऊपर बनने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का पता सेटेलाइट की सूचना यानि रिमोट सेंसिंंग से भी पहले लगा लेगी। आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में…

आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने बनाया सिस्टम

आईआईटी खड़गपुर के जिया अल्बर्ट, बिष्णुप्रिया साहू और प्रसाद के भास्करन जैसे वैज्ञानिकों के दल ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के तहत एक नई तकनीक ईजाद की है। इसमें बवंडर का सुराग लगाने वाली तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है और उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में ट्रॉपिकल साइक्लोन बनने की स्थिति और उसकी पूर्व-चेतावनी दी जा सकती है। अनुसंधानकर्ताओं ने इस विषय पर ‘एटमॉसफेरिक रिसर्च’ नामक पत्रिका में अपना शोध प्रकाशित किया है।

बंवडर और भंवरदार हवा का लग जायेगा सुराग

वैज्ञानिकों ने जो तकनीक विकसित की है, उसका मकसद है कि तूफान आने से पहले ही बंवडर और भंवरदार हवा का सुराग लगा लिया जाए। वैज्ञानिक इसकी पहचान और भंवरदार हवा का विश्लेषण करने के लिए दो चीजों के बीच की न्यूनतम दूरी को आधार बनाते हैं। इसका पैमाना 27 किलो मीटर और नौ किलो मीटर का है। इससे बनने वाली तस्वीर का मूल्यांकन करके पता लगाया जाता है कि तूफान की भावी दशा और दिशा क्या हो सकती है।

4 भयंकर तूफान बने विषय

इस अध्ययन में मॉनसून के बाद आए चार भयंकर तूफानों को विषय बनाया गया था- फाइलिन (2013), वरदाह (2013), गाजा (2018), मादी (2013) और दो तूफान मॉनसून के बाद आए- मोरा (2017) और आयला (2009), जो उत्तर हिंद महासगार के ऊपर बने थे।

90 घंटे पहले लग जाएगा पता

वैज्ञानिकों के दल ने गौर किया कि इस तकनीक से कम से कम चार दिन (लगभग 90 घंटा पहले) पहले तूफान के आने का पता लगाया जा सकता है कि वह कब बनेगा। इसमें मॉनसून से पहले और बाद, दोनों समय आने वाले तूफान शामिल हैं। ट्रॉपिकल साइक्लोन वातावरण की ऊपरी सतह पर पनपते हैं और पूर्व-मॉनसून काल के हवाले से जल्दी पकड़ में आ जाते हैं, जबकि मॉनसून पश्चात इसे इतनी तेजी से नहीं पकड़ा जा सकता।

उपग्रह द्वारा पकड़ने से भी तेज है यह तकनीक

इस अध्ययन में बवंडर और भंवरदार हवा की गहन पड़ताल की गई, उनके व्यवहार को जांचा-परखा गया तथा आम दिनों के वातावरण के साथ इसके नतीजों की तुलना की गई। इस तकनीक से ट्रॉपिकल साइक्लोन का वातावरण में ही सुराग लगाया जा सकता है। यह तकनीक समुद्री सतह के ऊपर की हलचल को उपग्रह द्वारा पकड़ने से भी तेज है।

अब नुकसान से बचने की प्रक्रिया और होगी तेज

भविष्य में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों यानि ट्रॉपिकल साइक्लोन का पहले पता लगने से सामाजिक और आर्थिक नुकसान से बचने का मौका मिलेगा। बताना चाहेंगे, अभी तक दूर संवेदी यानि रिमोट सेंसिंग तकनीक के जरिए ही उनका पता सबसे तेजी से लगाया जाता रहा है। बहरहाल, इस रिमोट सेंसिंग तकनीक से पता लगाना उसी समय संभव होता था, जब समुद्र के पानी की ऊपरी सतह गर्म हो और कम दबाव का क्षेत्र बन रहा हो। इसका पता लगाने और चक्रवात के वजूद में आने के बीच काफी लंबा अंतराल होता है, जिससे तैयारी करने का वक्त मिल जाता है।

वातावरण में आने लगती है स्थिरता

समुद्री सतह पर गर्म वातावरण बनने के हवाले से चक्रवात के वजूद में आने से पहले, वातावरण में अस्थिरता आने लगती है और हवा भंवरदार बनने लगती है। इस गतिविधि से वातावरण में उथल-पुथल शुरू हो जाती है। इस तरह के बवंडर से जो वातावरण बनता है, वह आगे चलकर तेज तूफान को जन्म देता है और समुद्र की सतह के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। तेज तूफान आने की संभावना का इन्हीं गतिविधियों से पता लगाया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *