
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी मंगलवार को सियासी बयानों की तेज़ गर्मी से तपती रही। मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया को लेकर यूपी सरकार इस समय पूरी तरह आक्रामक मोड में है, और मंत्रियों के ताज़ा बयानों ने साफ कर दिया कि यह सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सरकार के लिए “ऑपरेशन शुद्धिकरण” जैसा मिशन बन गया है। वहीं विपक्ष पर चौतरफा हमला करते हुए मंत्रियों ने यह भी संकेत दिया कि आने वाले दिनों में राजनीतिक टकराव और तीखा होने वाला है।
मतदाता सूची में घुसपैठियों को हटाने, फर्जी वोटरों की पहचान और बीएलओ पर बढ़ती जिम्मेदारी ने इस मुद्दे को बेहद संवेदनशील बना दिया है। कैबिनेट की बैठकों और मंत्रियों के लगातार बयान इसे महज एक सरकारी प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजनीतिक कोर एजेंडा बना रहे हैं।
जगह-जगह बयान—एक ही सुर: “घुसपैठियों को नहीं बख्शा जाएगा”
प्रदेश के कई शक्तिशाली मंत्रियों ने मंगलवार को बयान देते हुए कहा कि मतदाता सूची का संशोधन लोकतांत्रिक शुचिता के लिए आवश्यक है। दिलचस्प बात यह रही कि सभी मंत्रियों के सुर लगभग एक जैसे थे—विपक्ष पर हमला, मतदाता सूची के शुद्धिकरण की जरूरत और घुसपैठियों के खिलाफ सख्त भाषा।

जयवीर सिंह बोले—“कैबिनेट लोकहित में, बयानबाजी विपक्ष का शगल”
कैबिनेट मंत्री जयवीर सिंह ने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा कि कैबिनेट बैठकों को लेकर फैल रही अफवाहें पूरी तरह निराधार हैं।
उन्होंने कहा—
“लोक भवन की बैठकें जनता के हित के लिए होती हैं। विपक्षी दल मुद्दे कम और बयान ज्यादा बनाते हैं। मतदाता सूची का संशोधन लोकतंत्र की रीढ़ है और इस पर राजनीति नहीं हो सकती।”

उन्होंने दो टूक कहा कि सरकार का फोकस विकास और पारदर्शिता पर है और इसी कारण मतदाता सूची सुधार को प्राथमिकता दी गई है।
सुरेश खन्ना ने विपक्ष को शिक्षाप्रद नोटिस जैसा संदेश दिया
वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने संसद न चलने देने के लिए विपक्ष को तीखा संदेश दिया।
उन्होंने कहा—
“विपक्ष मतदाता सूची के शुद्धिकरण से सबसे ज्यादा परेशान है। संसद में उनका रवैया गैर-जिम्मेदाराना रहा। उन्हें जनता और देश के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।”
उनका बयान संकेत देता है कि सरकार मतदाता सूची को लेकर विपक्ष की हर आपत्ति को राजनीतिक हंगामा मान रही है।
ओपी राजभर का पुराना अंदाज़—सीधी बात, दो टूक
कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने इस मुद्दे पर अपनी पहचान की तरह सीधे शब्दों में कहा—
“चुनावी प्रक्रिया में बाहर के नागरिकों का नाम नहीं रहना चाहिए। बीएलओ जांच करें और गलत नाम हटाएं। यह चुनावी ईमानदारी से जुड़ा मुद्दा है।”
राजभर का यह बयान बीजेपी के नैरेटिव को और ज़ोर देता है कि अवैध नाम हटाना लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है, न कि राजनीति।

डिप्टी सीएम बृजेश पाठक—“घुसपैठियों की छुट्टी तय”
डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने भी साफ कर दिया कि यह प्रक्रिया रुकने वाली नहीं है।
उन्होंने कहा—
“घुसपैठियों को मतदाता सूची से हटाना बेहद जरूरी है। बिहार समेत किसी राज्य से कोई शिकायत नहीं आई। यह पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया है।”
बीएलओ से जुड़े विवादों पर भी उन्होंने कहा कि यह घटना दुखद है, लेकिन प्रक्रिया जरूरी है।
और फिर आए केशव प्रसाद मौर्य—सीधे प्रहार के अंदाज़ में
डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने विपक्ष पर सबसे जोरदार हमला बोला।
उनके शब्द थे—
“सरकार का काम न रुका है न रुकेगा। कांग्रेस और सपा बूथ लूटने वाली पार्टियाँ रही हैं। घुसपैठियों को हटाना हमारी जिम्मेदारी है। बीएलओ विपक्ष के बहकावे में न आएं।”
मौर्य का बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ और इस मुद्दे को पूरी तरह राजनीतिक रंग दे गया।
“साधारण बैठक”, लेकिन सियासी हलचल असाधारण
कैबिनेट की बैठक को लेकर सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहों पर विराम लगाते हुए मौर्य ने कहा—
“बैठक साधारण थी। हम लोग अक्सर बैठते हैं और प्रदेश के मुद्दों पर चर्चा करते हैं।”
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह “साधारण बैठक” भी इस समय राजनीतिक गर्मी बढ़ाने के लिए काफी रही।
क्या है ‘ऑपरेशन शुद्धिकरण’ जैसा मतदाता सूची संशोधन?
सरकार ने बीएलओ को कड़े निर्देश दिए हैं:
बाहरी एवं संदिग्ध नागरिकों की पहचान
फर्जी वोटरों को हटाना
मृत, डुप्लीकेट और गलत प्रविष्टियों को डिलीट
बूथों को “शुद्ध” बनाना
सरकार का दावा है कि इससे चुनाव पूरी तरह पारदर्शी होंगे, जबकि विपक्ष इसे नागरिकों को डराने की रणनीति बता रहा है।
विपक्ष भी मैदान में, लेकिन सुर रक्षात्मक
विपक्ष का कहना है कि यह अभियान चुनिंदा वर्गों को टारगेट कर उन्हें वोटर सूची से हटाने की कोशिश है।
लेकिन मंगलवार को मंत्रियों के बयान देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि सरकार विपक्ष की हर दलील को “शोर” मानकर अपनी प्रक्रिया आगे बढ़ाने के मूड में है।