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शतायु मतदाता का वैक्सीनेशन : चार बार सम्मानित 110 साल की महिला मतदाता ने लगवाई वैक्सीन- Amar Bharti Media Group राज्य, उत्तराखंड

शतायु मतदाता का वैक्सीनेशन : चार बार सम्मानित 110 साल की महिला मतदाता ने लगवाई वैक्सीन

नई दिल्ली। भ्रामक खबरों में फंस कर कई लोगों के वैक्सीन से भयभीत होने की खबरें खूब देखी और सुनी होंगी। लेकिन इस बार एक ऐसी महिला से मिलिए, जिन्होंने एक सदी बिता दी है, फिर भी उम्र के इस पड़ाव पर कोरोना से डट कर मुकाबला कर रही हैं। दरअसल उत्तराखंड की 110 साल की महिला ने हिम्मत और जज्बे के साथ कोरोना की वैक्सीन लगवाई है और मिसाल पेश की है।

देवभूमि की रहने वाली हैं देवकी

बागेश्वर क्षेत्र की सबसे बुजुर्ग महिला देवकी देवी ने कोरोना का पहला टीका लगवाया है। टीका लगवाने से खुश देवकी का कहना है कि, जीवन जीना एक कला है। संयमित खान पान और अनुशासित दिनचर्या से कोई भी इंसान लंबे समय तक स्वस्थ और चिरयुवा रह सकता है। वह गरुड़ विकासखंड के भिटारकोट गांव में रहती हैं।

शतायु मतदाता के रूप में 4 बार सम्मानित

देवकी देवी का विवाह 12 वर्ष की आयु में विवाह हुआ था। करीब 36 वर्ष पहले उनके पति का देहांत हो गया। उनके भरे-पूरे परिवार है। देवकी की इच्छा अपने सभी नाती-पोतों का भरा-पूरा परिवार देखने तक जीवित रहने की है। खास बात ये है कि वर्ष 1911 में जन्मी देवकी देवी को मतदाता दिवस पर प्रशासन शतायु मतदाता के रूप में चार बार सम्मानित कर चुका है।

सुबह जल्दी उठने की आदत

देवकी देवी आज भी सुबह जल्द उठती हैं। वो कहती हैं कि इसकी बचपन से आदत रही है। खाने में वह केवल शाकाहारी भोजन लेती हैं। ‌रोटी, दाल और सब्जी उनका प्रिय आहार हैं। कभी-कभार हल्का चावल भी लेती हैं। इस उम्र में उनके दांत पूरी तरह से ठीक हैं। उन्हें सुनाई भी देता है, हालांकि आंखों पर चश्मा चढ़ चुका है। वह पैदल चल-फिर लेती हैं। इस उम्र में भी वह पांच किलोमीटर पैदल चलने की हिम्मत रखती हैं।

आज भी याद हैं पुरानी बातें

अंग्रेजों के जमाने के दिन
इस उम्र में भी देवकी देवी की याददाश्त पूरी तरह से दुरुस्त है। उन्हें अंग्रेजी शासन की याद है। वह बताती हैं कि उस समय उनके मायके बाड़खेत में एक बंगला हुआ करता था। वहां अंग्रेज अफसर आकर रुकते थे। अंग्रेजों के आने पर गांव वाले अनाज, फल, सब्जियां ले जाते थे। अंग्रेजों के पास काफी सुंदर घोड़े भी होते थे। उनको बांधने के लिए अलग से घुड़शाला बनी होती थी।

ग़ुलाम मुल्क में था भाईचारा, अब नहीं अपनापन

देवकी देवी कहती हैं कि उन्होंने पूरे जीवनकाल में ऐसी बीमारी नहीं देखी, लेकिन हिम्मत बनाएं रखना है। बीमारी ने एक इंसान को दूसरे से दूर कर दिया है। बीमारी के डर से लोग अपनों को भूलते जा रहे हैं। लोगों को एक साथ मिलकर रहना चाहिए। वह कहती हैं कि पुराने जमाने में लोग एक-दूसरे का दुख-दर्द समझते थे। आपस में प्रेम व्यवहार था। गांव के सभी लोग सुख-दुख में शामिल होते थे। धन कमाने की होड़ में संयुक्त परिवार खत्म होते जा रहे हैं। गुलाम देश में जो भाईचारा और अपनापन था, आजादी के बाद वह खत्म होता जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि भले ही पास न हों, लेकिन अपनों को न भूलें।

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