भारत में कई विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए दोहरी मुश्किल आ गई है. ये कंपनियां पहले इक्वलाइजेशन फीस दें या फिर कस्टम ड्यूटी यह समझ नहीं आ रहा है.
भारत में विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों से खरीदे जाने वाली किसी भी चीज पर कस्टम ड्यूटी लगती है. इसके बाद इस साल अप्रैल में सरकार ने इन पर दो फीसदी इक्वलाइजेशन लेवी लगाना शुरू कर दिया है.
अब सवाल है कि विदेशी कंपनियों से मंगाए जाने वाले सामान की कीमत पर इक्वलाइजेशन लेवी लगेगी या फिर इस पर कस्टम ड्यूटी लगने के बाद अंतिम रूप से तय कीमत पर यह लेवी लगेगी. सरकार की ओर से इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं है.
विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों में इसे लेकर असमंजस है. भारत में ज्यादातर विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां हैं, जिन्हें टैक्स का सामना करना पड़ रहा है.
क्या है इक्वलाइजेशन लेवी?
दरअसल सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में नॉन रेजिडेंट कॉमर्स ऑपरेटर की ओर से डिलीवरी की गई सर्विसेज पर दो फीसदी टैक्स लगाया था.
इसे ही इक्वलाइजेशन लेवी कहते हैं. विभाग ने ई-कॉमर्स इक्वलाइजेशन लेवी का चालान नोटिफाई कर दिया है. लेवी जमा करने के लिए पैन और भारतीय बैंक में ई-कॉमर्स ऑपरेटर के बैंक खाता नंबर की जरूरत होगी.
पिछले दिनों सरकार ने कहा था कि भारत में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ऑपरेट करने वाली विदेशी कंपनियों के लिए अब पैन (PAN) जरूरी होगा ताकि वे इक्वलाइजेशन लेवी दे सकें.
सीबीडीटी के मुताबिक इसने इक्वलाइजेशन लेवी नियमों 2016 में संशोधन किया है. इस दायरे में उन विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों को भी ले आया गया है, जिन्हें ये लेवी देना होता है.