आख़िर ‘कोबरा’ में जाने से क्यों कतरा रहे सीआरपीएफ जवान…?

2017 से बंद हो गया अलाउंस, भत्ते से ही मिलता था प्रोत्साहन

नई दिल्ली। 
घने जंगलों में युद्ध कला में महारत रखने वाले केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के कोबरा कमांडो कई तरह के मुकाबले में विश्व में बेहतरीन कहे जाने वाले अमेरिकी मैरीन कमांडोज को भी पीछे छोड़ चुके हैं। पहले सीआरपीएफ अफसरों और जवानों में कोबरा इकाई का हिस्सा बनने के लिए होड़ लगी रहती थी। लेकिन अब, नए अफसर और जवान, कोबरा में आने से कतराने लगे हैं।

अलांउस बंद होना बड़ा कारण

जानकारी हो कि वर्ष 2017 के बाद से कोबरा कमांडो इकाई के प्रति अफसरों और जवानों का मोह भंग होने लगा है। पहले कोबरा में जाने के लिए आईजी तक से सिफारिशें आती थीं। तब वहां एक अलग पहचान थी, रिस्क अलाउंस भी ठीक था। चार साल पहले आर1एच1 के तहत यह प्रावधान लागू हुआ कि एक ही इलाके में यदि कोबरा और सामान्य ड्यूटी वाले जवान तैनात हैं तो उन्हें बराबर अलाउंस मिलेगा।

उस वक्त कोबरा जवानों को अलग से ‘कोबरा अलाउंस’ मिलता था। यह सामान्य ड्यूटी देने वाले जवान या अधिकारी के लिए नहीं था। बाद में यह प्रावधान लागू कर दिया गया कि जोखिम वाले इलाके जैसे नक्सल प्रभावित जिले, वहां पर कोबरा और सीआरपीएफ की सामान्य ड्यूटी देने वालों को एक जैसा भत्ता मिलेगा। अफसरों को लगभग 25 हजार तो जवानों को 17 हजार रुपये मिलने लगे। कोबरा जवानों का तर्क है, हमें तो पहले से ही यह भत्ता मिलता रहा है, लेकिन अब वह बंद है।

बिगड़ रहा यंग प्रोफाइल ढ़ांचा

कोबरा फोर्स ज्वाइन करने की निर्धारित आयु को बढ़ाना पड़ रहा है। पहले कोबरा में आने की तय आयु 30-35 साल होती थी, अब उसे 48 वर्ष तक बढ़ा दिया है। इससे फोर्स का यंग प्रोफाइल ढांचा बिगड़ रहा है। सीआरपीएफ ने यह बात मानी है कि कोबरा बटालियन के वांछित आयु वर्ग में अफसरों की कमी हो गई है। फोर्स की ऑपरेशनल जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कई पदों के लिए यह आयु सीमा बढ़ा दी गई है।

‘मार्कोस’ की तर्ज पर ‘कोबरा’ अलाउंस की उम्मीद

सूत्रों के अनुसार, अधिकारी और जवानों को इसी भत्ते से कोबरा में आने के लिए प्रोत्साहन मिलता था। उन्हें लगता था कि वे एक विशिष्ट फोर्स का हिस्सा हैं। नेवी के मार्कोस कमांडो को जोखिम भत्ते के अलावा मार्कोस भत्ता अलग से मिलता है। सीआरपीएफ में अब कोबरा अलाउंस बंद कर दिया गया है। अब वहां तैनात सभी जवानों और अधिकारियों को रिस्क अलाउंस दिया जाता है। मतलब, कोबरा और सामान्य ड्यूटी वालों में कोई भेद नहीं रहा।

मिनिस्ट्रियल स्टॉफ को अमल रहा फुल अलाउंस

सूत्रों का कहना है कि कोबरा अलाउंस दोबारा से शुरू हो, ताकि अधिकारी और जवान कोबरा में आएं। कोबरा हेडक्वार्टर पर तैनात मिनिस्ट्रियल स्टॉफ को भी फुल अलाउंस मिल रहा है, जबकि उनका ऑपरेशनल ड्यूटी से कोई लेना-देना नहीं होता। वे दूसरे जोखिम वाले इलाकों में भी वह अलाउंस ले रहे हैं, जहां आर1एच1 या आर1एच2 ब्रेकेट्स लागू हैं। अगर कैडर अधिकारियों को संगठित सेवा का लाभ देकर उन्हें खाली रैंक ही दे दें तो वे कम से कम कोबरा जैसे बल में ऑपरेशन को लीड कर सकते हैं। वहां वांछित आयु के अभाव में पद खाली तो नहीं रहेंगे।

वीरता पदक वालों को भी नहीं मिला प्रमोशन

जिन अफसरों को बहादुरी के लिए मेडल मिले हैं, उन्हें भी प्रमोशन नहीं मिलता। कई साल पहले सीआरपीएफ की ओर से खुद के मूल्यांकन वाली एक रिपोर्ट तैयार की गई थी। इसमें 55 साल की सेवा के बाद कर्मियों को रिटायरमेंट देने की बात कही गई थी। ताकि रिटायरमेंट से बहुत पद खाली होते और वहां नई भर्ती की जा सकती थी। साथ ही जवानों को समय रहते पदोन्नति भी मिल जाती। साथ ही भर्ती की आयु सीमा भी कम की जाए। सामान्य वर्ग के लिए 22 साल और आरक्षित वर्गों के लिए यह आयु सीमा 25 साल कर दी जाए। ताकि वह किसी भी बड़े ऑपरेशनल में जाने के लिए तैयार रहे।

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