कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज बुधवार को 28वां दिन है, गतिरोध खत्म करने के लिए सरकार की ओर से एक बार फिर से बातचीत का प्रस्ताव भेजा गया, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया. किसान संगठन की ओर से कहा गया कि हम तीनों कानूनों में किसी भी प्रकार के बदलाव की बात नहीं कर रहे बल्कि तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं.
सिंघु बॉर्डर पर आज बुधवार को सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए किसान संगठनों की बैठक बुलाई गई थी. बैठक के बाद किसान संगठनों ने कहा कि हम तीनों कानूनों में किसी भी प्रकार के बदलाव की बात नहीं कर रहे बल्कि इन कानूनों को निरस्त करने की मांग करते हैं. उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर जो प्रस्ताव सरकार से आया है उसमें कुछ भी साफ नहीं और स्पष्ट नहीं है.
किसान संगठनों की ओर से कहा गया कि सरकार की ओर से आया प्रस्ताव इतना खोखला और हास्यास्पद है कि उस पर उत्तर देना उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि हम तैयार हैं लेकिन सरकार ठोस प्रस्ताव लिखित में भेजे और खुले मन से बातचीत के लिए बुलाए.
‘ठोस प्रस्ताव भेजे सरकार’
किसानों की ओर से कहा गया कि सरकार निरर्थक प्रस्ताव को दोहराने के बजाए ठोस प्रस्ताव भेजे ताकि उसको एजेंडा बनाकर हम सरकार से बात कर सकें.
स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव ने कहा कि यूनाइटेड फार्मर्स फ्रंट ने आज सरकार को एक पत्र लिखा है, जिसमें कहा गया है कि सरकार को यूनाइटेड फार्मर्स फ्रंट द्वारा पहले लिखे गए पत्र पर सवाल नहीं उठाना चाहिए क्योंकि यह सर्वसम्मत से लिया गया फैसला था. सरकार का नई चिट्ठी किसान संगठनों को बदनाम करने की एक नई कोशिश है.
उन्होंने आगे कहा कि हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वे उन निरर्थक संशोधनों को न दोहराएं जिन्हें हमने अस्वीकार कर दिया है. लेकिन लिखित रूप में एक ठोस प्रस्ताव लेकर आएं ताकि इसे एक एजेंडा बनाया जा सके और बातचीत की प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू की जा सके.
किसानों का मनोबल तोड़ना चाहती है सरकार
राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार कक्का ने कहा कि हम सरकार से फलदायी बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाने का अनुरोध करते हैं. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी कृषि कानूनों के कार्यान्वयन को निलंबित कर दिया जाए. इससे वार्ता को बेहतर माहौल मिलेगा.
भारतीय किसान यूनियन के युधवीर सिंह ने कहा कि जिस तरह से केंद्र बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है, इससे स्पष्ट है कि सरकार इस मुद्दे पर देरी करना चाहती है और विरोध करने वाले किसानों का मनोबल तोड़ना चाहती है. सरकार हमारे मुद्दों को हल्के में ले रही है, मैं उसे इस मामले का संज्ञान लेने के लिए चेतावनी दे रहा हूं.