
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जिस राजनीतिक तूफान ने पूरे चुनावी परिदृश्य को हिला दिया, उसे लेकर हर तरफ एक ही चर्चा है—सीएम योगी आदित्यनाथ का बिहार दौरा और उनकी रैलियों का जबरदस्त असर। चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया कि बिहार में भाजपा-एनडीए की जीत केवल एक राजनीतिक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक व्यापक जनविश्वास का नतीजा है। और इस विश्वास को मजबूती देने में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बिहार में हुई रैलियों ने अभूतपूर्व भूमिका निभाई।
बिहार की जनता के बीच योगी का करिश्मा, उनका आक्रामक चुनावी तेवर, महागठबंधन पर किए गए सीधे हमले और राष्ट्रवादी एजेंडा—इन सबने मिलकर वह चुनावी माहौल तैयार किया जिसने महागठबंधन की जमीन खिसका दी। राहुल गांधी के नेतृत्व वाला महागठबंधन जहां जनता के मुद्दों को भुनाने में फिसड्डी साबित हुआ, वहीं योगी की रैलियों में उमड़ा जनसैलाब भाजपा के लिए निर्णायक ऊर्जा बन गया।
2025 के चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ ने लगातार बिहार का दौरा किया और एक के बाद एक बड़ी जनसभाएं कर चुनावी हवा का रुख मोड़ दिया। उनके प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार रहे—
23 अक्टूबर 2025 – छपरा
24 अक्टूबर 2025 – दरभंगा व मधुबनी
25 अक्टूबर 2025 – सिवान
27 अक्टूबर 2025 – भोजपुर व बक्सर
30 अक्टूबर 2025 – पटना
2 नवंबर 2025 – मुंगेर व बेगूसराय
हर सभा में जनसागर उमड़ पड़ा। कई यात्राओं में भीड़ नियंत्रण बड़ी चुनौती बन रही थी, क्योंकि लोग केवल योगी को सुनने नहीं, बल्कि ‘बदलाव’ का संदेश सुनने आ रहे थे।
बिहार की धरती पर योगी आदित्यनाथ ने वह भाषण शैली दिखाई जिसने 2017 में यूपी की राजनीति बदल दी थी। उनकी भाषा सीधे जनता से संवाद करती है, और परिणामस्वरूप लोग उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। हर रैली में योगी इस बात पर जोर देते रहे कि बिहार को जातीय समीकरणों से बाहर निकालने की जरूरत है। उन्होंने महागठबंधन पर निशाना साधते हुए कहा कि “बिहार में गरीब का भला केवल चुनावी वादों से नहीं, ईमानदार सरकार से होगा।”
योगी ने अपने यूपी मॉडल को बिहार की जनता के सामने रखते हुए लगातार यह सवाल उठाया कि—
“क्या जनता फिर से जंगलराज को चुनना चाहती है या विकास का रास्ता?”
योगी ने राहुल गांधी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा—
“जिन्हें देश की असली तस्वीर समझ नहीं आती, वे बिहार की तकदीर बदलने का दावा कर रहे हैं।”
उनके इस व्यंग्य का प्रभाव सीधा महागठबंधन के वोटबैंक पर दिखा।
बिहार में चुनावी रैलियां पहली बार इतनी बड़ी संख्या में योगी के नाम पर जुटीं। छपरा में 23 अक्टूबर की सभा में अनुमान के अनुसार लगभग 2 लाख से अधिक लोग पहुंचे। दरभंगा में उनकी सभा में इतना भारी हुजूम उमड़ा कि प्रशासन को बार-बार धक्का-मुक्की रोकने की अपील करनी पड़ी। पटना की 30 अक्टूबर वाली सभा ने तो जैसे माहौल ही बदल दिया। भीड़ इतनी अधिक थी कि आसपास के गांवों से लोग ट्रैक्टर, बाइक और पैदल चलकर पहुंचे। उस दिन बिहार की राजनीति ने महसूस किया कि चुनावी हवा अब किस दिशा में बह रही है।
राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और महागठबंधन के अन्य नेताओं ने चुनावी मुद्दों को जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द साधने की कोशिश की। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने इसे विकास बनाम भ्रष्टाचार की लड़ाई में बदल दिया। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि—
“बिहार की जनता अब जाति की राजनीति से ऊपर उठकर सुरक्षा, रोजगार, और ईमानदार सरकार पर वोट कर रही है।”
यही संदेश युवा मतदाताओं पर गहरा असर डाल गया। पटना विश्वविद्यालय, भागलपुर और मुजफ्फरपुर के युवा वोटरों ने खुले तौर पर बीजेपी-एनडीए की ओर झुकाव दिखाया।
योगी ने यूपी में गुंडागर्दी पर कार्रवाई के उदाहरण देकर वोटरों को भरोसा दिलाया कि बिहार में भी कड़े फैसले होंगे। उनके भाषणों में राष्ट्रवाद का तीखा स्वर महागठबंधन की आर्थिक और स्थानीय राजनीति पर भारी पड़ा। योगी ने पीएम मोदी की योजनाओं का लाभ गणित और जमीनी असर, दोनों को अच्छे से समझाया। राहुल गांधी की रैलियों में उतनी भीड़ नहीं दिखी, जितनी योगी की प्रत्येक सभा में स्वतः उमड़ रही थी। सोशल मीडिया पर “योगी इन बिहार”, “बिहार बोले—योगी दोहराओ” जैसे ट्रेंड लगातार छाए रहे।
जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो शुरुआती रुझानों से ही स्पष्ट हो गया कि बिहार में ‘योगी फैक्टर’ का असर कितना गहरा था। एनडीए की सीटें लगातार बढ़ती गईं और महागठबंधन की सीटें ढलान पर। कई सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को भारी बढ़त मिली, खासकर उन क्षेत्रों में जहां योगी की रैली आयोजित हुई थी। यह एक स्पष्ट संकेत था कि रैलियों का सीधा असर लोगों के मतदान निर्णय पर पड़ा।
बिहार के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में इस बार सबसे बड़ा बदलाव यह देखने को मिला कि युवा पहली बार धर्म-जाति से ऊपर उठकर नेतृत्व के कामकाज को वोट दे रहे थे, महिलाएं बड़े पैमाने पर कानून-व्यवस्था को प्रमुख मुद्दा मानकर वोट कर रही थीं और किसान समुदाय डबल इंजन सरकार की योजनाओं से सीधे जुड़ रहा था। इसके मुकाबले महागठबंधन की जातीय राजनीति फीकी पड़ गई।
2025 के बिहार चुनाव इतिहास में इस रूप में दर्ज होंगे कि यह ऐसे चुनाव थे जिसमें एक बाहरी राज्य का मुख्यमंत्री केवल स्टार प्रचारक नहीं, बल्कि चुनाव जीत का निर्णायक चेहरा बना। योगी आदित्यनाथ ने यह साबित कर दिया कि चुनाव केवल वादों से नहीं, विश्वसनीय नेतृत्व से जीते जाते हैं, जनता केवल भाषण नहीं, दृढ़ संकल्प चाहती है और बिहार की राजनीति अब पुराने समीकरणों पर नहीं, नए आत्मविश्वास पर चुनी जाती है। यही कारण है कि बिहार में चली इस ‘केसरिया आंधी’ को लोग अब “योगी इफेक्ट 2.0” कहकर याद कर रहे हैं।
वही बिहार विधानसभा चुनाव में राजग गठबंधन को मिली प्रचंड जीत के बाद शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी के राज्य मुख्यालय पर धूमधाम से विजयोत्सव मनाया गया। पार्टी प्रदेश महामंत्री (संगठन) धर्मपाल सिंह की मौजूदगी में कार्यकर्ताओं ने भव्य विजयोत्सव आयोजित किया।
बिहार चुनाव में राजग गठबंधन की जीत के बाद बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पार्टी मुख्यालय पहुंचे। ढोल-नगाड़ों की थाप पर नाचते-गाते हुए उन्होंने अपनी खुशी का इज़हार किया। जीत की उमंग में कार्यकर्ताओं ने आतिशबाज़ी की और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर “बिहार में विजय” की शुभकामनाएँ दी।
पार्टी मुख्यालय पर बिहार विधानसभा में हुए विजयोत्सव में प्रदेश उपाध्यक्ष संतोष सिंह, बृज बहादुर, प्रदेश महामंत्री गोविन्द नारायण शुक्ला, प्रदेश मंत्री शिवभूषण सिंह, किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कामेश्वर सिंह, प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित, प्रदेश प्रवक्ता समीर सिंह, मनीष शुक्ला, हीरो बाजपेयी, अवनीश त्यागी, मुख्यालय प्रभारी भारत दीक्षित, सहप्रभारी अतुल अवस्थी व चौधरी लक्ष्मण सिंह, युवा नेता नीरज सिंह, रामचन्द्र प्रधान (सदस्य विधान परिषद), मुकेश शर्मा (सदस्य विधान परिषद), महापौर सुषमा खर्कवाल सहित बड़ी संख्या में पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता सम्मिलित हुए।