
भारतीय संस्कृति, विरासत और मूल्यों से नई पीढ़ी को जोड़ने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश भर में ग्रीष्मकालीन सांस्कृतिक कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। इन कार्यशालाओं का उद्देश्य बच्चों और युवाओं को लोकनृत्य, लोकसंगीत, चित्रकला, कठपुतली, नाटक, पारंपरिक हस्तशिल्प और लोक कथाओं जैसी विधाओं का व्यवहारिक प्रशिक्षण देना है, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़ सकें।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि यह कार्यशालाएं केवल प्रशिक्षण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक व्यापक सांस्कृतिक आंदोलन का हिस्सा हैं, जो लोक परंपराओं को पुनर्जीवित कर नई पीढ़ी को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने का प्रयास है। भारतेंदु नाट्य अकादमी, भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय, बिरजू महाराज कथक संस्थान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएं इस पहल में भाग ले रही हैं।
इस वर्ष कार्यशालाओं में भारत की प्राचीन बौद्ध और जैन परंपराओं को भी प्रमुखता दी गई है। “बुद्ध पथ प्रदीप कार्यशाला” और जैन दर्शन आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से बच्चों को ध्यान, करुणा, नैतिकता, अहिंसा और सत्य जैसे मूल्यों से जोड़ा जा रहा है।
अब तक प्रदेश के 55 जिलों में 59 कार्यशालाएं सफलतापूर्वक संपन्न कराई जा चुकी हैं, जिनमें लोक नाट्य, नौटंकी, आल्हा, ढोला-मारू, कठपुतली, चंदौल, राई नृत्य, रसिया गायन, और लोकगीतों के विशेष प्रसंगों पर फोकस किया गया।
थारू जनजाति की मूंज शिल्प कला, रंगोली, मुखौटा निर्माण और पारंपरिक चौक पूरण चित्रकला जैसी हस्तशिल्प विधाओं पर आधारित कार्यशालाएं भी आयोजित की गईं। ढोलक वादन जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों पर प्रशिक्षण देकर प्रतिभागियों को लय-ताल से परिचय कराया गया।
जयवीर सिंह ने बताया कि संस्कृति विभाग के प्रयासों से पिछले तीन वर्षों में सांस्कृतिक आयोजनों की संख्या तीन गुना बढ़ी है और ग्राम्य क्षेत्रों से लेकर शहरी अंचलों तक कलाकारों, युवाओं और महिलाओं की सहभागिता में जबरदस्त वृद्धि हुई है। लोक कलाओं को संरक्षित करने और उत्तर प्रदेश को भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में स्थापित करने की दिशा में यह अभियान मील का पत्थर साबित हो रहा है।