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छठ पूजा: आस्था और विश्वास का प्रतीक पर्व- Amar Bharti Media Group उत्तर प्रदेश, बिहार, धर्म, विशेष बिहार

छठ पूजा: आस्था और विश्वास का प्रतीक पर्व

कब मनाया जाता है छठ महापर्व ?

कार्तिक शुकल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है | छठ पूजा एक बेहद ही खास महापर्व है सभी के लिए | छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दुसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। यह प्राकर्तिक सौन्दर्य और परिवार के कल्याण के लिए की जाने वाली एक महत्तवपूर्ण पूजा है | भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है | सूर्योपासना का यह महापर्व मुख्यरूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है | छठ महापर्व बिहार में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है | यह महापर्व बिहार की संस्कृति बन चुका है | यह पर्व बिहार की संस्कृति की झलक दिखाता है | धीरे-धीरे यह महापर्व पुरे भारत में मनाया जाने लगा है |

क्या मान्यता है इस महापर्व को मनाने की ?

इस महापर्व के नियम कठोर है, चार दिनों की अवधि में मनाया जाने वाला पर्व है | पारिवारिक सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है यह पर्व | स्त्री और पुरुष समान रूप से मनाते है यह पर्व | लोक परंपरा के अनुसार सूर्येदेव और छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है | छठ पर्व सूर्ये की आराधना का पर्व है, जिसे हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है | छठ पूजा में सूर्ये देव और छठी माँ की पूजा की जाती है | छठ पूजा पर सूर्ये देव को अर्ध्य देने की प्रथा है | छठी माँ को संतान की रक्षा और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में माना जाता है | छठ पूजा के दिन वर्ती भगवन सूर्ये देव और छठी मासे प्राथना करते है और उनके आशीर्वाद की कामना भी करते है |

छठ महापर्व किस प्रकार मनाया जाता है ?

आपको बता दे की, छठ पूजा चारदिवसीय उत्सव है | छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। कहते है की भगवान द्वारा मिली शक्तियों से ही यह पर्व संपन्न हो पाता है | यह महापर्व बेहद ही लोकप्रिय है | इसकी मान्यता बहुत ही ज्यादा है |

प्रथम दिन नहाय खाय :

छठ पर्व का पहला दिन जिसे “नहाय खाय” के नाम से जाना जाता है | प्रथम दिन, जो भी व्रती है वह आपने नाख़ून काटता है तथा स्वच्छ पानी से बाल धोकर नहाता है | उसके बाद वह खाना बनाना प्रारंभ करते है इसको भी विधि-विधान के साथ किया जाता है | यह खाना कांसे या मिटटी के बर्तन में पकाया जायेगा | खाने में व्रती कद्दू की सब्जी, मूंग चना दाल और अरवा चावल का उपयोग करते है | पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। व्रती इस दिन केवल एक ही बार खाना खाते है | पहले व्रती भोजन ग्रहण करेंगे उसके बाद ही घर के अन्य सदस्य |

दूसरा दिन खरना :

छठ पर्व का दूसरा दिन जिसे खरना के नाम से जाना जाता है | इस दिन व्रती पुरे दिन उपवास करते है | शाम को चावल, गुड़ और गन्ने के रास का उपयोग करके खीर बनाई जाती है | घी लगी रोटी भी बनती है | प्रसाद बनाने में नमक और चीनी का प्रयोग नहीं करते है | व्रती प्रसाद का भोग लगाने के बाद एक अलग रूम में जाकर एकांत में प्रसाद ग्रहण करता है | परिवार के सभी सदस्ये उस समय बाहर चले जाते है ताकि कोई शोर ना हो | एकांत में कहते समय किसी भी तरह की आवाज़ सुनना पर्व के नियमों के विरुद्ध है | पुन: व्रती के खाने के बाद वह सभी परिवारजनो और रिश्तेदारों-मित्रों को प्रसाद वितरण करते है | इसके बाद व्रती अगले 36 घंटो के लिए व्रती निर्जला व्रत रखते है | मध्य रात्रि को व्रती छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद ठेकुआ बनाते है |

तीसरा दिन संध्या अर्ध्य :

छठ पर्व का तीसरा दिन जिसे संध्या अर्ध्य के नाम से जाना जाता है | इस दिन परिवार के सभी सदस्य पूजा की तैयारी में लगे रहते है | छठ पूजा के लिए बांस की बानी हुयी टोकरी जिसे “दउरा” भी कहते है | उसमें सभी फलों को धोकर और प्रसाद को सजाया जाता है | घर का पुरुष दउरा को अपने हाथो से घाट तक लेकर जाता है | दउरा को सर के ऊपर इसलिए रखते है ताकि वह अपवित्र ना हो | छठ घाट की ओर जाते हुए सभी महिलाये छठ पूजा का गीत गाते हुए जाती है | सूर्यास्त से कुछ समय पहले व्रती सारा पूजा का सामान लेकर घाट में घुटने तक पानी में जाकर खड़ी हो जाती है | डूबते हुए सूर्ये को अर्ध्य देते हुए पांच बार परिकर्मा करते है |

चौथा दिन उषा अर्ध्य :

छठ पूजा का चौथा दिन जिसे उषा अर्ध्य के नाम से जाना जाता है | संध्या अर्ध्य में जो प्रसाद दउरा में रहता है उसको दुबारा से स्थापित करते है परन्तु फल वही रहते है | सभी विधि-विधान संध्या अर्ध्य की तरह रहते है | पूर्व की और मुहं करके व्रती घाट में खड़े होते है इस दिन व्रती सूर्येउदय से पहले ही घाट में जाकर उगते सूर्ये को अर्ध्य देने पहुंच जाते है | वहां उपस्थित लोग व्रती को दूध या पानी का अर्ग देते है | वहां उपस्थित लोगो में प्रसाद वितरण करके व्रती घर वापस आ जाते है | पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा प्रसाद खा कर व्रत पूर्ण करते है जिससे “पारण” कहते है |

लेखिका: लवली कुमारी