25 जुलाई को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खनिजों पर दिया रॉयल्टी कर नहीं है। कोर्ट ने कहा कि राज्यों को खनिज भूमि पर कर लगाने का अधिकार है| यह फैसला देकर कोर्ट ने 1989 के उस पुराने फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर रॉयल्टी कर है|
नया निर्णय भारत के नौ-जजों की बेंच ने लिया है जिसमें मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी वी नागरत्ना मौजूद है। 8:1 की बहुमत से सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि राज्यों को संविधान के तहत खदानों और खनिजों वाली भूमि पर कर लगाने का अधिकार है।
मुख्य न्यायाधीश डी. चंद्रचू ने बताया कि संविधान की सूची II की प्रविष्टि 50 संसद को खनिज अधिकारों पर कर लगाने से रोकती है।मामला यह है कि क्या राज्य सरकारों के पास एमएमडीआरए (खान और खनिज (विकास और विनियमन) एक्ट 1957 के अधिनियमन के कारण खानों और खनिजों से संबंधित गतिविधियों पर कर लगाने और उन्हें विनियमित करने की शक्तियां हैं।
1989 में सुप्रीम कोर्ट ने इंडिया सीमेंट्स बनाम तमिल नाडु के मामले में फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि एमएमडीआरए के तहत रॉयल्टी ‘कर’ का एक रूप है और ऐसी रॉयल्टी पर उपकर लगाना राज्यों की विधायी क्षमता से परे है।31 जुलाई को बेंच फिर इस पर विचार करेगी कि यह फैसला पूर्वव्यापी होगा या नहीं| यदि यह निर्णय पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जाता है, तो केंद्र सरकार को राज्यों को भारी कर बकाया देना पड़ सकता है।