इजराइल और हमास के बीच छिड़े युद्ध के संबंध में इंटरनेट पर जमकर झूठा प्रचार अभियान शुरू हो गया है। इस मौके पर बहुत लोग वीडियो गेम की क्लिप और युद्ध की पुरानी इमेज पोस्ट कर रहे हैं। फर्जी सूचनाओं के इस युद्ध में व्यक्तियों के साथ सरकारें भी शामिल हैं। अधिकतर देश सेना तैनात करने से पहले अपने दुश्मनों को गुमराह करने के लिए हरसंभव तरीके अपनाते हैं। दरअसल, युद्ध की पुरानी रणनीति के तहत सूचना के स्रोत हमले का पहला निशाना होते हैं। सरकारें सामान्य तौर पर टेलीकॉम डेटा और संचार नेटवर्कों की निगरानी करती हैं।
दुनिया भर में सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ने से ज्यादा से ज्यादा सरकारें साइबर सैनिकों के माध्यम से निम्नस्तरीय सूचनाएं फैलाने अकाउंट बनाने, बॉट्स के इस्तेमाल, के युद्ध में शामिल हो रही हैं। 2020 में हैकिंग जैसे तरीकों का उपयोग करते हैं। ऑक्सफोर्ड इंटरनेट इंस्टीट्यूट की एक स्टडी के अनुसार सरकारों या राजनीतिक पार्टियों के कर्ता-धर्ता जनमत को तोड़ने- मरोड़ने के अभियान में साइबर सैनिकों के मार्फत जुटे हुए हैं। ऑक्सफोर्ड रिसर्च ग्रुप ने 81 देशों की पहचान की है। ये ऑनलाइन एडवरटाइजिंग पर करोड़ों रुपए खर्च करने के साथ साइबर ट्रप्स के जरिए झूठी खबरें फैलाने के लिए कई तरह की रणनीतियां अपनाते हैं। यह स्थिति हैकिंग या विरोधी और उसके इंफ्रास्ट्रक्चर पर सीधे हमले से अलग है।
साइबर टुप्स के संबंध में डेटा सीमित है क्योंकि शोधकर्ता सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा हटाए गए कंटेंट की रिपोर्ट पर निर्भर करते हैं। लेकिन ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं ने इसमें सफलता हासिल की है। 2020 में फेसबुक पर ईरान के सूचना अभियान का निशाना फिलिस्तीन था। ईरान ने ट्विटर पर इजराइल को भी निशाना बनाया था। रिसर्चरों ने पता लगाया है कि इजराइल का अभियान हाई टेक्नोलॉजी से जुड़ा है। साइबर ट्रप्स के माध्यम से सरकार समर्थक और विपक्ष विरोधी कंटेंट फैलाया जाता है। इजराइल विरोधी कंटेंट दबा दिया जाता है।इजराइली साइबर ट्रप्स सोशल मीडिया पर जनमत को बदलने के लिए गलत सूचनाएं देने, ट्रोलिंग, समर्थक प्रचार को आगे बढ़ाने और आंकड़े पेश करने की रणनीति अपनाते हैं। अमेरिकी सरकार और सहयोगी कॉरपोरशनों की साइबर टुप्स का कोई मुकाबला नहीं है। वे राजनीतिक विरोधियों, विदेशी सरकारों को बदनाम करने का अभियान चलाते हैं। यहां तक कि फेसबुक जैसी कंपनियों ने प्रतिस्पर्धी कंपनियों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए पीआर फर्म की सेवाएं ले रखी हैं। रिसर्चरों ने पाया कि गलत प्रचार अभियान चलाने वाले सरकारी ऑपरेटरों और प्राइवेट कंपनियों के बीच सीमा बेहद धुंधली है।