मायावती ने छोड़ा दिल्ली का सरकारी बंगला, सियासत में हलचल

नई दिल्ली/लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने दिल्ली स्थित अपना सरकारी आवास खाली कर दिया है। लुटियंस ज़ोन के वीआईपी इलाके में स्थित 35 लोधी एस्टेट का यह बंगला मायावती को बतौर राष्ट्रीय दल की अध्यक्षता के नाते आवंटित किया गया था। 20 मई 2025 को उन्होंने यह बंगला केंद्र सरकार को लौटा दिया। इस घटनाक्रम ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं को जन्म दे दिया है।

मायावती ने बंगला खाली करने की वजह सुरक्षा कारणों को बताया है। उनके पास Z+ श्रेणी की सुरक्षा है और NSG कमांडो उनके साथ तैनात रहते हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने इस आवास को संवेदनशील मानते हुए इसे बदलने की सिफारिश की थी क्योंकि बंगले के सामने एक बड़ा स्कूल है जहां रोज़ाना हजारों बच्चों और उनके अभिभावकों की आवाजाही होती है। सुरक्षा जांच के चलते स्कूली दिनचर्या प्रभावित होती थी और स्थानीय नागरिकों को भी परेशानी होती थी।

हालांकि इस निर्णय को सिर्फ सुरक्षा तक सीमित देखना सरलीकरण होगा। मायावती का दिल्ली के इस बंगले से नाता लगभग दो दशकों से रहा है। बतौर सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री वे हमेशा राजधानी के वीआईपी इलाकों में रही हैं। अब उनका यह बंगला छोड़ना राजनीतिक संकेतों से भी जुड़ा है।

2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पार्टी उत्तर प्रदेश में एक भी सीट जीतने में नाकाम रही और राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभावहीन रही। चुनाव आयोग ने बसपा के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे की समीक्षा शुरू कर दी है। ऐसे में मायावती द्वारा दिल्ली का यह बंगला खाली करना कई संभावनाओं को जन्म देता है। यह माना जा रहा है कि अब वे राष्ट्रीय राजनीति से कुछ दूरी बनाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर ज़्यादा फोकस करेंगी।

उनका लखनऊ स्थित माल एवेन्यू वाला आवास पहले से ही पार्टी कार्यालय की तरह कार्य करता है। अब संभावना है कि यही उनका मुख्य केंद्र बनेगा। इस परिवर्तन को पार्टी के पुनर्गठन और जमीनी पकड़ को फिर से मजबूत करने की रणनीति से भी जोड़ा जा रहा है।

बसपा के घटते जनाधार और दलित वोटों के बिखराव के बीच यह फैसला एक पुनरावलोकन की प्रक्रिया का हिस्सा माना जा सकता है। पिछले वर्षों में भाजपा ने दलित और पिछड़े वर्गों को साधने की कोशिशें की हैं और कुछ हद तक इसमें सफल भी रही है। सपा और कांग्रेस भी दलित वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं। ऐसे में मायावती के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे संगठन को मजबूत करने के लिए फील्ड में उतरें।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बंगला खाली करना केवल प्रतीकात्मक कदम नहीं है बल्कि यह मायावती की आगामी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। संभव है कि वे अब अधिक समय यूपी में बिताकर कार्यकर्ताओं से संवाद करें, बूथ स्तर पर संगठन को सक्रिय करें और 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू करें।

विपक्षी दलों ने इस घटनाक्रम पर अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा ने इसे मायावती की घटती राजनीतिक ताकत का संकेत बताया, वहीं समाजवादी पार्टी ने तंज कसते हुए कहा कि जनता जब साथ छोड़ दे तो बंगले भी साथ नहीं रहते। कांग्रेस ने सीधे कोई बयान नहीं दिया, लेकिन पार्टी सूत्रों ने कहा कि बसपा की कमजोरी कांग्रेस के लिए दलित समाज में खुद को फिर से स्थापित करने का मौका हो सकता है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मायावती दिल्ली में फिर से कोई निजी आवास लेंगी या पूरी तरह लखनऊ को ही अपना राजनीतिक केंद्र बनाएंगी। फिलहाल उन्होंने इस पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। लेकिन एक बात तय है कि बंगला खाली करने का यह फैसला केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई नहीं है। यह बहुजन समाज पार्टी और स्वयं मायावती की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

राजनीति में प्रतीकों का महत्व होता है और मायावती द्वारा दशकों पुराने सरकारी बंगले को छोड़ना भी एक ऐसा ही प्रतीक बन गया है। क्या यह राजनीतिक संन्यास की तैयारी है या एक नई शुरुआत की भूमिका – इसका उत्तर आने वाले समय में मिलेगा। फिलहाल, दिल्ली के सियासी गलियारों में मायावती के इस कदम ने नई चर्चा को जन्म दे दिया है।