- एफडीए से मांगी उपयोग की अनुमति
- 44 हजार लोगों पर बड़े पैमाने पर किया गया परीक्षण
नई दिल्ली। दुनिया में कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान लगातार जारी है। इन सबके बीच अमेरिकी दवा निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने अपनी बनाई हुई वैक्सीन के इमरजेंसी उपयोग के लिए एफडीए को आवेदन भेजा है। बीती 4 फरवरी को दवा निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन ने एफडीए को अपनी सिंगल डोज कोरोना वैक्सीन के उपयोग की अनुमति के लिए आवेदन किया है।
गौरतलब हो कि अमेरिका में पहले से ही कोरोना वायरस की दो वैक्सीन फाइजर बायोएनटेक और मॉडर्ना के इमरजेंसी उपयोग की अनुमति है। अमेरिका के सेंटर फॉर इंफेक्शियस डिजीज रिसर्च एंड पॉलिसी के मुताबिक अगर इस वैक्सीन को लगाने की अनुमति दवा नियामक फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से मिलती है, तो यह मार्च के अंत तक उपलब्ध हो जाएगी। जानकारी के मुताबिक जॉनसन एंड जॉनसन आने वाले दिनों में स्वनिर्मित कोरोना के सिंगल डोज वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति यूरोपीय अधिकारियों से भी मांगेगी।
कुछ यूं काम करती है जॉनसन एंड जॉनसन की कोविड-19 वैक्सीन
फाइजर और माडर्ना द्वारा विकसित कोविड-19 के टीके एमआरएनए आधारित टीके हैं। ये टीके सार्स-कोव-2 वायरस के स्पाइक प्रोटीन के एक हिस्से को एनकोडिंग करके प्रभाव पहुंचाते हैं। ये टीके शरीर में प्रतिरक्षा की प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिए एनकोडेड टुकड़ों का इस्तेमाल करते हैं। जिनकी वजह से शरीर में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी का निर्माण होता है। जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन थोड़ा अलग तरीके से काम करती है। एक प्रकार से देखा जाए तो यह एक एमआरएनए टीका नहीं है। यह एक एडेनोवेक्टर वैक्सीन है, जिसका अर्थ है कि यह एक निष्क्रिय वायरस का उपयोग प्रोटीन देने के लिए एक वेक्टर के रूप में करता है।
लेकिन, अब यह सवाल उठता है कि शरीर में ‘निष्क्रिय वायरस’ देने से अनजाने में बीमार होने का खतरा उत्पन्न होता है, लेकिन इसमें ऐसा नहीं है। इस वैक्सीन को लेकर जारी रिपोर्ट के मुताबिक, “निष्क्रिय वायरस आपको बीमार होने का कारण नहीं बना सकता है या बीमार नहीं कर सकता है।“ बल्कि, जॉनसन एंड जॉनसन के कोविड-19 वैक्सीन में एडेनोवायरस सार्स-कोव-2 के स्पाइक प्रोटीन जीन के “वेक्टर” के रूप में आपकी कोशिकाओं में कार्य करते है, जिससे कोशिकाएं उस जीन की कॉपी बनाती हैं। ये स्पाइक प्रोटीन आपके प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा पहचाने जा सकते हैं और शरीर में एंटीबॉडी बनाने के लिए काम करते हैं और यही शरीर को कोविड-19 से बचाने में मददगार होते हैं।
सिंगल शाॅट वैक्सीन
रिपोर्ट के मुताबिक ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन इसी तरह के एडेनोवायरस तकनीक का उपयोग करता है। जॉनसन एंड जॉनसन ने अपनी इबोला वैक्सीन बनाने के लिए भी इसी तकनीक का भी इस्तेमाल किया है, जिसे शरीर में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करने में सुरक्षित और प्रभावी दोनों बताया जा रहा है। वहीं आपको बता दें कि फाइजर और माडर्ना द्वारा विकसित कोविड-19 की दो डोज लोगों को लगाई जा रही है, लेकिन जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा निर्मित यह वैक्सीन सिंगल शॉट वैक्सीन है।
कितना प्रभाव करेगी यह वैक्सीन
टीकाकरण के 28 दिन बाद, कंपनी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा निर्मित कोविड-19 की इस वैक्सीन का लगभग 44,000 लोगों पर बड़े पैमाने में परीक्षण किया गया। जिसके बाद इस वैक्सीन को कुल मिलाकर 66 प्रतिशत प्रभावी बताया गया था। जॉनसन एंड जॉनसन ने यह भी कहा कि अगर वैक्सीन के प्रभाव का तुलनात्मक रूप से अध्ययन करें तो शरीर को इन्फ्लूएंजा से बचाने में फ्लू शॉट केवल 40 से 60 प्रतिशत प्रभावी है, फिर भी यह फ्लू से संबंधित मौतों को कम करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, ऐसे इस वैक्सीन के प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता।
कोविड-19 वैक्सीन की डोज
यह वैक्सीन सिंगल शॉट वैक्सीन है, जिसका मतलब इसकी सिर्फ एक ही डोज मरीजों को दी जाएगी। वहीं अगर हम दूसरी कोविड-19 वैक्सीन की बात करें तो उनके टीकों की दो डोज कुछ दिनों के भीतर लगवानी पड़ती है और इस वैक्सीन के भंडारण के लिए अन्य टीकों की तुलना में तापमान को नियंत्रित करने की जरुरत कम पड़ती है। अगर कमर्शियल इस्तेमाल के लिए इस वैक्सीन को मंजूरी मिलती है, तो यह दुनिया की सबसे पहली सिंगल डोज वैक्सीन होगी।