महंत बी. बी दास ‘बाबाजी’
भारत में कोरोना संक्रमण विकराल होता जा रहा है। दूसरी लहर के घातक और जानलेवा थपेड़े थम नहीं रहे हैं। इसी बीच, तीसरी और अति तीव्र लहर तय होने की चेतावनी वातावरण में वायरल है। इधर, कोरोना के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के तमाम प्रयासों के बावजूद भी संक्रमितों की संख्या में कमी नहीं हो रही है।
संक्रमण अब गंवई अंचलों में फैल चुका है और पूरे विस्तार की मुद्रा में है। भारत में दूसरी लहर के मध्य कोरोना संक्रमण दुनिया के सभी देशों से अधिक है। मौतें हर रोज नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। भारत में प्रतिदिन कितने लोग काल के गाल में समा रहे हैं, सरकारों के पास इसके प्रमाणिक रिकार्ड नहीं है। अगर यह कहें कि केंद्र सरकार सहित चंद राज्य सरकारें आंकड़ों की बाज़ीगरी कर रही हैं, तो यह कहना ग़लत कतई नहीं होगा। संक्रमितों के आंकड़ों के खेल में भी स्वास्थ्य महकमा आगे आया है।
उत्तर प्रदेश के राज्य मुख्यालय लखनऊ में कम जांच कर आंकड़ों में की जा रही बाजीगरी का खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि कोविड-19 प्रभारी वरिष्ठ आईएएस रोशन जैकब द्वारा किया गया। अब, ख़ुद ही सोचिए, जब एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी स्वयं इसबात का खुलासा कर रही है, तो कुछ ईमानदार कलमकारों की सच लिखने की आदत से यूपी के मुखिया नाराज़ क्यों हैं? ऑक्सीजन के अभाव में असंख्य लोग स्वर्ग सिधारे यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।
पूर्वांचल की नदियों खासकर बलिया में तैरती मिल रहीं अनगिनत लाशें हालातों की पटकथा कुछ और ही बयां कर रही हैं। किसी घर में कोई बालिग नहीं बचा, तो किसी परिवार में कमाऊ पूत नहीं रहा। किसी नवेली का सुहाग उजड़ गया, तो किसी के बुढ़ापे का सहारा उठ गया।
आंकड़े शहर और जिला मुख्यालयों तक ही सीमित है।
कई शहरों में यह आंकड़ा 50 फ़ीसदी भी पार कर चुका है।चारों ओर कोहराम मचा है। देश के राजनयिकों का किसी से कोई सरोकार नहीं। कोई जिए अथवा मरे। अब तो डाक्टर का भगवान होना और उन भगवानों के मंदिर यानी अस्पतालों के मायने ही बदल गए। ऑक्सीजन की जंग में शीर्ष न्यायालय अवश्य ही मोर्चे पर है। अस्पतालों की दशा देशवासियों से छिपी नहीं। मुंह मांगी मोटी रकम न मिलने पर पीड़ित रोगी का ऑक्सीजन संयंत्र पृथक कर उसे अस्पताल से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है।
यूपी के राज्य मुख्यालय लखनऊ सीमा पर नामचीन मेयो अस्पताल में ऐसा हृदय विदारक दृश्य देखने को मिले। वीभत्स दौर के बीच ही बंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस ने गणितीय आधार पर आकलन किया है कि 11 जून तक मौतों का आंकड़ा साढे पांच लाख पार कर सकता है।
दूसरी लहर के घातक और जानलेवा थपेड़े अभी थमें भी नहीं कि तीसरी लहर की चेतावनी वायरल है। भारत सरकार के प्रधान सलाहकार के.विजय राघव के हवाले से प्रसारित चेतावनी में तीसरी लहर की भीषण तीव्रता से आगाह कर सचेत और तैयार रहने की अपील की गई है। हालांकि, वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा लहर के आने का निश्चित समय नहीं बताया गया। विशेषज्ञों के आंकलन पर गौर करें तो मई के अंत में पीक की दशा आ सकती है।
कोरोना के भय से लोग मानसिक अवसाद में जाने लगे हैं। भारत ही नहीं दुनियाभर के देशों में डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़े हैं। रोज कमाना रोज खाना मजदूर पेशा लोग घरों में कैद होने से भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। यहाँ पर मैं एक बात और स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि बीते अप्रैल के महीने में पीटीआई द्वारा विदेशी एजेंसी के हवाले से जारी एक वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, ब्राज़ील में कोरोना मामले जब विश्व में दूसरे नम्बर आ गए थे, उसी के साथ ही क़रीब आधी आबादी यानी 50 फीसद आबादी भुखमरी से जूझ रही थी।खास बात यह है कि इस आबादी का प्रतिशत वर्तमान में बढ़ता ही जा रहा है। अब, ऐसे में भारत में क्या होगा का भय, कहीं तो चाकरी जाने का भय या फिर आमदनी कम होने के भय से लोग डिप्रेशन का शिकार होने लगे हैं।
दूसरी तरफ, अस्पतालों में बेड के नाम पर भारी भरकम वसूली, चिकित्सा उपकरणों के दामों में भारी बढ़ोतरी करने वालों पर अंकुश का अभाव भी कम कहर नहीं बरपा रहा है। कार्रवाई एवं औपचारिकता इक्का-दुक्का मामले तक ही सीमित है। एक बड़ा तबका वह है जो बड़े अस्पतालों व चिकित्सकों का भारी भार वहन करने में अपने आप को असहाय पाते है। जो मृत्यु वरण को अंतत: विवश होते। ऐसी असंख्य मौतें सरकारी दस्तावेज में दर्ज ही नहीं होती। तो फिर ऐसे में मरने वालों का असली डाटा की बात बेईमानी से अधिक कुछ नहीं। वैश्विक पत्रिका ‘दि लांसेट’ के अनुसार, भारत में हो रही इस त्रासदी का सीधा जिम्मेदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। हालांकि, देश की हिंदी भाषी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसे मोदी की छवि पर दाग लगाने की कोशिश करार देने जुटे हैं।
हां, खामियों के इस दौर को अदालतों द्वारा सामूहिक नरसंहार की श्रेणी में आंका गया है। तीसरी लहर वर्तमान से ज्यादा तीव्र और खतरनाक होगी? बचाव और तैयारियां की तस्वीर साफ नहीं। शीघ्रातिशीघ्र टीकाकरण परन्तु टीके की भी अपर्याप्तता है। तो फिर, ऐसे में क्या करें? हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे या फिर लोगों को राम भरोसे छोड़ दें और मरने दे असमय बेमौत।
(लेखक स्तंभकार हैं)