नई दिल्ली। आज के महामारी के इस दौर में कमोबेश हर इंसान परेशान है, चाहे वो आम हो या ख़ास.. कोविद की इस दूसरी लहर में शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने अपने किसी परिजन, सगे संबंधी या फिर दोस्त को ना खोया हो.. और कहा जाता है ना कि जब आप खुद मानसिक रूप से परेशान होते हैं तो आपको अपने सिवा कोई और नहीं दिखता ऐसे में आप किसी दूसरे की मदद करने की शायद नहीं सोच पाते..
लेकिन ज़रा सोचिए कोई इंसान अगर नि:स्वार्थ भाव से दूसरों की मदद में अपना पूरा जीवन लगा दे तो आप शायद उसे भगवान का दर्जा देंगे.. ऐसे ही जिंदादिल इंसान हैं रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित और सामाजिक संस्था “गूंज” के संस्थापक अंशु गुप्ता.. जो इस महामारी में न केवल लोगों के लिए दिन-रात खड़े हैं उनकी हर संभव मदद भी कर रहें हैं.. अंशु पिछले 22 साल से देश के तकरीबन 27 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में अनवरत लगे हुए हैं.
उपेक्षितों पर ध्यान
इस मुश्किल समय में लोग जरुरत मंदों की हाथ खोल कर मदद कर रहे हैं लेकिन समाज के कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनपर शायद किसी का ध्यान नहीं हैं.. जैसे कि यौनकर्मी ट्रांसजेंडर, विकलांग, एचआईवी संक्रमित लोग, कुष्ठ रोगी और म्यूजिशियन… ये वो समुदाय है जिनके बारे में लोग अक्सर बात नहीं कर रहे हैं खासकर इस महामारी में.. इन सभी के लिए आर्थिक तंगी के साथ साथ भूख एक विकट समस्या है.. गूंज अपने सहयोगी संस्थाओं के जरिए इन तक सीधे पहुंच रहा है और उनकी हर संभव मदद के लिए खड़ा है. अंशु का मानना है कि ये लोग पहले से जिंदा रहने के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं और लॉकडाउन में तो उनकी परेशानी दोगुनी हो गई है.. और इनके लिए किसी एक को नहीं बल्कि सभी को एकजुट होकर सामने आना होगा. अगर बात दिव्यांग जनों की हो तो ये एक शारीरिक, मानसिक एवं दृश्य विकलांगता है उन्हें सम्मानजनक तरीके से जीवन यापन करने के लिए एक चुनौती के समान है. गूंज इनके साथ दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और तमिलनाडु में ऐसे स्कूलों के साथ काम कर रहें हैं जो इनके हित में काम करते हैं.. इनके साथ मिलकर ऐसे लोगों की भूख मिटाने के लिए एक राशन किट मुहैया कराया जा रहा है जिससे कि वो दो जून की रोटी आसानी से खा सकें.. इसके अलावा अंशु बताते हैं कि भारत में बहुत सारी महिलाएं अपनी आजीविका के एकमात्र साधन के लिए यौन कार्यों पर निर्भर हैं.. उनके काम के इर्द-गिर्द कलंक, भेदभाव और हिंसा एक बड़ी और अलग चर्चा का विषय है लेकिन हालिया दौर में उनकी सबसे बड़ी चुनौती उनकी आजीविका का नुकसान है.. ओडिशा, दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में गूंज की टीम उन तक खाद्य किट और स्वच्छता संबंधी आवश्यक चीजें पहुंचा रही हैं.. इसके अलावा जब कभी उनकी दूसरी समस्याओं या जरूरतों का पता चलता है तो हम उनके समाधानों पर भी काम करते हैं.
ट्रांसजेंडर समुदाय
हम सभी अवगत है ट्रांसजेंडर समुदाय के संघर्षों से या फिर उस लड़ाई से जो कि यह समाज लड़ रहा है अपने अस्तित्व एवं सम्मान की खातिर.. महामारी की वज़ह से हुए इस लॉकडाउन में उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.. एक तो जीविका ना मिलने की कमी, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, कई सारी सरकारी योजनाओं, टीकाकरण और आइसोलेशन सेंटर में जगह नहीं मिल पाना.. वगैरह वगैरह.. इसकी एक वजह दस्तावेजों की कमी भी हो सकती है.. इस समुदाय के लिए गूंज देश के कुछ हिस्सों में हम भोजन किट और फैमिली मेडिकल किट पहुंचाने का काम कर रहा है.. इसके अलावा हमने एक नई पहल की है, हम गूंज की राहत और फैमिली मेडिकल किट इन्ही लोगों के जरिए दूसरों तक पहुंचा रहे हैं.. इससे लोगों की मानसिकता पर भी कुठाराघात होगा जो केवल यह मानते रहे हैं कि ये समुदाय केवल मांग सकता है, दे नहीं सकता.. हम इस सोच को एक नई दिशा देने में जुए हुए हैं..
एचआईवी संक्रमित लोग
कोविड में जहां आम जन परेशान हाल है वहीं एचआईवी संक्रमित लोग, बच्चों और महिलाओं की बड़े पैमाने पर अनदेखी की जा रही है. हम उनके साथ लंबे समय तक काम करने की कोशिश कर रहे हैं.. लोगों की नज़रों से ओझल ये लोग कलंक और भेदभाव से मुक्त जीवन के योग्य हैं जो इन्हें समानता और सम्मान के साथ मिलनी चाहिए, उनकी भूख मिटाने के लिए हम लगे हुए हैं.. हम देश के अलग-अलग हिस्सों में इन तक राशन किट पहुंचा रहे हैं..
कुष्ठ रोगी
पूरे भारत में करीब 750 कुष्ठ कॉलोनियों में रहने वाले लगभग बीस हजार लोगों पर आज किसी का ध्यान नहीं जा रहा है और उन्हें पूरी तरह उपेक्षित कर दिया गया है.. और यहां इनके लिए बुनियादी सुविधाओं की भी कमी है जैसे कि साफ पानी, शौचालय की ब्यवस्था, रोजमर्रा की दवाएं और पट्टियों के अलावा यहां प्रतिदिन भोजन जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं पहुंच रही हैं.. सही मायने में उनकी दुर्दशा का कोई अंत नहीं है। गूंज के इन प्रयासों का उद्देश्य भूख और स्वास्थ्य जैसे इन प्रमुख मुद्दों को संबोधित करना एवं दूसरी कमियों को भरना है. कुष्ठ रोग के ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि अल्सर के घावों के आसपास की पट्टियों को हर दो या तीन दिन में बदलना पड़ता है, और इसकी कमी ने इन्हें और परेशानी में डाल दिया है.
कलाकार एवं शिल्पकार
भारत अपनी कला और संस्कृति में रहता है और सांस लेता रहा है, लेकिन कलाकारों और कारीगरों का एक बड़ा समुदाय इस कठिन दौर में अपनी कला और खुद को जिंदा रखने की जद्दोजहद में दिन रात दो चार हो रहा है.. क्योंकि इस मुश्किल घड़ी में कलाकार और शिल्पकारों के काम की डिमांड काफी घटी है जिसके चलते वो आर्थिक तंगी के बुरे दौर से गुजर रहे हैं.. गूंज शिल्पकला को जीवित रखने के लिए उनके साथ कई स्तरों पर काम कर रहा है… इनके हाथों से बनाईं गईं बांस की टोकरियाँ और कपड़े के बने थैले गूंज इनसे सीधे खरीद रहा है जिससे कि उनकी आजीविका चलती रहे.. उनके लिए राशन किट और फैमिली मेडिकल किट भी उनतक पहुंचाई जा रही है जिससे कि वो स्वस्थ्य रह सकें..
गूंज का काम और उसका प्रभाव के बारे में अंशु बताते हैं कि…
*बीते साल भर में गूंज ने करीब 10 हज़ार टन से अधिक राशन और अन्य आवश्यक सामग्री देश के अलग अलग हिस्सों में वितरित किया है. इसके अलावा करीब साढ़े चार लाख परिवार तक गूंज की पहुंच रही है.. और अगर हम पके हुए भोजन वितरण की बात करें तो वो करीब पौने चार लाख तक रहा है..
- इन साल भर के दरम्यान करीब दस लाख से अधिक फेस मास्क लोगों तक पहुंचाए गए हैं साथ ही अगर सैनिटरी पैड की बात की जाए तो करीब 13 लाख 70 हज़ार के करीब महिलाओं को वितरित किया गया है.
- सबसे महत्वपूर्ण बात गूंज ने सीधे किसानों से ढाई लाख किलो से अधिक फल और सब्जियां खरीदी हैं.. और उसे आस-पास के इलाकों में जरूरतमंदों तक पहुंचाए गए हैं..
- गूंज ने बहुत सारे आइसोलेशन सेंटर बनाए हैं जिसका नाम दिया है, नॉट अलोन सेंटर, मतलब कि आप अकेले नहीं हैं, हम आपके साथ हैं…
- 70 हजार से अधिक परिवार को दवाइयों की एक किट मुहैया कराया गया है
- 10 हजार के करीब अंतिम छोर पर काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को मेडिकल किट दी गई है.
- 30 हजार से अधिक पीपीई किट्स वितरित किए गए हैं..
- गूंज की फ्लैगशिप योजना डिग्निटी फाॅर वर्क के जरिए करीब 8 हजार से अधिक परियोजनाओं पर काम हुआ है, जिसमें 1500 से अधिक सब्जी की बागवान, 400 से अधिक तालाब को साफ सुथरा और ठीक करना, 800 से अधिक नहरों का नवीनीकरण करना, 1000 से अधिक निजी स्नानघरों व शौचालयों का निर्माण करना शामिल है..
बातचीत के अंत में अंशु गुप्ता कहते हैं कि ये वक्त सोचने का नहीं कुछ करने का है.. अब देश को और अधिक विचारकों की जरूरत नहीं है.. काम करने वालों की जरुरत है.. हमें लोग चाहिए और मजबूती के साथ आगे बढ़ने के लिए उनका साथ चाहिए.. और अगर सभी मिलकर ठान लें तो मुश्किल कुछ भी नहीं, चाहे परिस्थितियां कुछ भी क्यों ना हो…
ऐसे में वो अपने सिर्फ एक ही मंत्रा की सलाह सभी को देते हैं… लगे रहो !!