यह अड्डा बनेगा आत्मनिर्भर भारत की पहचान
नई दिल्ली। किसी देश की आधारभूत संरचना की मजबूती से पता चलता है कि कोई देश असल में कितना मजबूत है। भारत सबसे ज्यादा ध्यान इसी आधारभूत संचरना पर दे रहा है। हम सब जानते हैं, सैन्य ढांचे, आधारभूत संचरना के महत्वपूर्ण अवयव होते हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने इस क्षेत्र में चमत्कारिक गति से काम करते हुए शानदार प्रगति की है। ऐसी ही एक परियोजना है ‘प्रोजेक्ट सीबर्ड’। यह परियोजना कर्नाटक के कारवार नौसेना अड्डे पर चल रही है, जिसे दो चरणों में विभाजित किया गया है। इसका पहला चरण पूरा हो चुका है और अभी परियोजना के दूसरे चरण पर काम चल रहा है। गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कर्नाटक के कारवार नौसेना अड्डे का दौरा कर ‘प्रोजेक्ट सीबर्ड’ के तहत जारी ढांचागत निर्माण के विकास कार्यों का जायजा लिया।
क्या है ‘प्रोजेक्ट सीबर्ड’?
कारवार में नए नौसैनिक अड्डे के निर्माण को आगे बढ़ाने के लिए 1999 में ‘प्रोजेक्ट सीबर्ड’ को मंजूरी दी गई थी। इस परियोजना के पहले चरण को 2005 में पूरा किया गया था और 31 मई 2005 को इसे नौसेना के लिए चालू कर दिया गया था। प्रोजेक्ट सीबर्ड के चरण II की शुरुआत 2011 में हुई, लेकिन पर्यावरणीय अनुमति न मिलने के कारण प्रोजेक्ट अटका रहा है। 2014 में नई सरकार आने के बाद इस प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू किया गया। इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 3 बिलियन रुपए है। इस प्रोजेक्ट का दूसरा चरण पूरा होने के बाद यह ‘स्वेज कैनाल’ के पूर्वी तरफ दुनिया का सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा होगा।
कैसे हुआ प्रोजेक्ट सीबर्ड का जन्म
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान मुंबई में भारतीय नौसेना के पश्चिमी बेड़े को वाणिज्यिक शिपिंग यातायात, मछली पकड़ने वाली नौकाओं और पर्यटकों से शिपिंग लेन में भीड़ के कारण सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस समस्या को को दूर करने के लिए युद्ध के बाद कई विकल्पों पर विचार किया गया। पश्चिमी तट पर एक बेस के लिए वैकल्पिक स्थानों को ढूंढा गया, जिसमें तिरुवनंतपुरम, कन्नूर और थूथुकुडी शामिल थे। 1980 के दशक की शुरुआत में, तत्कालीन नौसेना प्रमुख एडमिरल ऑस्कर स्टेनली डॉसन ने पश्चिमी घाट की पहाड़ियों और अरब सागर के बीच कर्नाटक राज्य में कारवार के पास एक समर्पित नौसैनिक अड्डे का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, 1991 के आर्थिक संकट सहित कई कारणों से, इस प्रस्ताव के आगे बढ़ने में देरी हुई। 1999 में दूसरे पोखरण परीक्षण के बाद, तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने कारवार में नए नौसैनिक बेस के निर्माण के लिए प्रोजेक्ट सीबर्ड को मंजूरी दी। हॉचटीफ, नीदरलैंड के बैलास्ट नदीम ड्रेजिंग, ऑस्ट्रेलिया के रैडिसन और नीदरलैंड के नेडेको के साथ साझेदारी में, लार्सन एंड टुब्रो को प्रमुख ठेकेदार के रूप में बंदरगाह पर समुद्री कार्यों के लिए ठेका दिया गया। उस समय बताया गया था, कारवार बेस भारत के सबसे बड़े नौसैनिक अड्डों में से एक होगा और इसे दो चरणों में बनाया जाएगा। इसमें भारत के सबसे बड़े युद्धपोत और विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य सहित कई युद्धपोत रहेंगे।
नौसेना बेस के रूप में कारवार बेस के फायदे
कारवार नौसेनिक बेस, मुंबई और गोवा में भारतीय नौसेना के ठिकानों के दक्षिण में और कोच्चि के उत्तर में स्थित है। यह बेस दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग मार्ग, फारस की खाड़ी और पूर्वी एशिया के बहुत करीब है। इसके अलावा यह पड़ोसी देशों के सबसे मारक विमानों की पहुंच से बाहर है। यहां एक प्राकृतिक गहरे पानी का बंदरगाह है, जो बड़े विमान वाहक युद्धपोत को समायोजित करने में सहायक है। यहां अन्य जरूरी विस्तार के लिए काफी क्षेत्र है।
रक्षामंत्री ने किया विकास कार्यों का निरीक्षण
निरीक्षण के दौरान अपने संबोधन में रक्षा मंत्री ने ‘प्रोजेक्ट सीबर्ड’ के तहत किए जा रहे कार्यों की प्रगति पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस परियोजना के पूरा होने के बाद कारवार नौसैनिक अड्डा एशिया का सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा बन जाएगा, जो सशस्त्र बलों की सैन्य अभियान सम्बंधी तैयारी को और मजबूत करेगा तथा व्यापार, अर्थव्यवस्था और मानवीय सहायता संबंधी अभियानों को बढ़ाने में मदद करेगा।
नौसेना के कारण जलीय सीमाएं पूरी तरह सुरक्षित
रक्षा मंत्री ने भारतीय नौसेना की, सामरिक और कूटनीतिक तथा वाणिज्यिक स्तरों पर भारत की स्थिति को मजबूत करने के अलावा समुद्री और राष्ट्रीय सुरक्षा में अमूल्य योगदान देने के लिए, सराहना की। उन्होंने कहा कि नौसेना देश की रक्षा के अपने कर्तव्यों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही है। देश के 7,500 किलोमीटर से अधिक के समुद्र तट, लगभग 1300 द्वीपों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय नौसेना की ही है। केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि नौसेना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप सागर (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) पर ध्यान केंद्रित करते हुए समुद्री पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों को लगातार मजबूत कर रही है। उन्होंने 1961 के गोवा मुक्ति संग्राम और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय नौसेना की भूमिका की भी प्रशंसा की।
सैन्य सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम
रक्षा मंत्री ने रक्षा मंत्रालय में चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ की नियुक्ति और सैन्य मामलों के विभाग की स्थापना सहित सशस्त्र बलों की सैन्य तैयारियों को और मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा किए गए कुछ सुधारों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाई गई कई पहलों को भी सूचीबद्ध किया। इन पहलों में घरेलू खरीद के लिए 2021-22 के लिए पूंजी अधिग्रहण बजट के तहत आधुनिकीकरण निधि का 64 प्रतिशत आवंटन, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया 2020 में बदलाव और रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 74 प्रतिशत करना शामिल है।