जीवन का महत्व सभी के लिए एक समान होता है. हर व्यक्ति खुशहाल जीवन जीना चाहता है. जब इंसान जन्म लेता है तो पेट से कुछ भी सीख कर नहीं आता है. वह सब पृथ्वी में रहकर ही सीखता है. जब एक बच्चा बड़ा होना शुरू होता है तो उसके माता पिता को भी उसे स्कूल में दाखिला कराने के लिए समय से योजना बनानी पड़ती है. ऐसा क्यूँ होता है, क्यूंकि अब उस बालक को अपने जीवन में ज्ञान अर्जित कर भविष्य में न केवल खुद का, बल्कि पुरे समाज का भला करना होता है. और यह बिना गुरु के संभव नहीं होता. इसलिए हमे अपने गुरुओ पर हमेशा गर्व होना चाहिए.
गुरु और उनकी शिक्षा बिना जीवन का कोई महत्व ही नहीं रह जाता है. आज देश और विदेश में जितने भी महान व्यक्ति है, समाज में अपने गुरुओ द्वारा प्रदान शिक्षा से समाज को हर बुराई से दूर ले जाने का कार्य कर रहे है. समाज में जितनी भी कुरीतियां है, उनका नाश सिर्फ और सिर्फ शिक्षा ही करती है. इसलिए हर व्यक्ति को शिक्षित करने वाले गुरुओ का पद, दुनिया के सारे पदों से उपर है.
गुरु शिष्य परंपरा का संबंध आज से नहीं बल्कि प्राचीन समय से चलता आ रहा है. इसलिए हमारा हर एक दिन अपने गुरुओ को समर्पित होना चाहिए. अब सवाल उठता है कि हमारे देश में 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है. इसके पीछे कारण है कि हमारे प्रिय पूर्व राष्ट्रपति, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर, 1888 को हुआ था. जब सन 1962 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला, तो उनके छात्र 5 सितंबर को एक विशेष दिन के रूप में मनाने के लिए उनके पास निवेदन लेकर गए.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने अपने छात्रो को सभी गुरुओ की महत्वता को समझाते हुए, 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के लिए कहा. तब से भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
शिक्षक आर्थिक रूप से गरीब हो या धनवान, वह हर एक परिस्थिति में महान होता है. इसलिए हर एक शिक्षक का समान भाव से आदर होना चाहिए. देश के सर्वोच्च पदों में बैठे व्यक्तियों की सफलता के पीछे उनके गुरुओ का ही हाथ होता है.