
जौनपुर। विकासखंड करंजाकला के नसरुद्दीनपुर स्थित अस्थायी गौशाला में सोमवार को एक बीमार गाय इलाज के लिए घंटों तड़पती रही, लेकिन कोई पशु चिकित्सा अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। गौशाला में मौजूद ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव केवल खड़े होकर तमाशा देखते रहे। जिम्मेदार अधिकारियों की अनदेखी और संवेदनहीनता के चलते अंततः गाय की मौत हो गई।
जब ग्राम पंचायत अधिकारी से इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. धर्मेंद्र सिंह को सूचना दे दी गई थी। वहीं डॉ. सिंह ने दावा किया कि उन्हें कोई सूचना नहीं मिली थी और जब उनके विभाग के कर्मचारी गौशाला पहुंचे, तब उन्हें जानकारी हुई कि गाय मृत पड़ी है। डॉ. सिंह ने बताया कि पशुधन प्रसार अधिकारियों द्वारा उन्हें इसकी सूचना दी गई, जिसके बाद ग्राम प्रधान और सचिव को सूचित कर दफनाने के निर्देश दे दिए गए।
इस पूरे मामले में सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि पंचायत सचिव को यह तक नहीं मालूम था कि गाय मरी है या नहीं। एक तरफ पशु चिकित्सा अधिकारी गाय को मृत बता रहे हैं, दूसरी तरफ ग्राम पंचायत अधिकारी स्थिति से अनभिज्ञ हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि गौशाला में गंदगी का अंबार है। पशुओं को सूखा भूसा दिया जा रहा है, न तो उसमें चुनी मिलाई गई है और न ही हरा चारा। साफ-सफाई और पोषण की भारी कमी के चलते गायें लगातार बीमार हो रही हैं। यही नहीं, बीमार पशुओं को समय से चिकित्सा सुविधा तक नहीं मिल रही, जिससे उनकी मौत हो रही है।
सरकार भले ही गौवंश संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि गौशालाओं में चारा-पानी तक की व्यवस्था नहीं है। ग्राम प्रधान और सचिव की देखरेख में चल रही इन अस्थायी गौशालाओं की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। खानपान और देखभाल की सही व्यवस्था न होने से लगातार गायें मर रही हैं।
जब इस संबंध में मुख्य विकास अधिकारी और जिलाधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई तो दोनों के मोबाइल स्विच ऑफ मिले या उन्होंने फोन नहीं उठाया।
सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए और गौशालाओं की स्थिति पर गंभीरता से कार्रवाई की जाए, वरना पशु कल्याण के सारे दावे कागज़ी ही रह जाएंगे।