Diwali 2025: दुनिया भले ही धर्म के नाम पर बँट रही हो, लेकिन भारत की आत्मा आज भी एक है – और इसकी सबसे खूबसूरत झलक इस बार दिवाली पर काशी की गलियों में देखने को मिल रही है। वाराणसी, जिसे काशी कहा जाता है, हमेशा से ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ की मिसाल रहा है
Diwali 2025: काशी की मुस्लिम महिलाओं ने रची दीपावली की नई कहानी!
एक ऐसा शहर जहां मंदिरों की घंटियों और मस्जिदों की अज़ानों में कोई फर्क नहीं होता।इस बार दीपावली पर काशी की मुस्लिम महिलाओं ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिसने पूरे देश का दिल जीत लिया है। ये महिलाएं मिलकर गाय के गोबर से एक लाख इको-फ्रेंडली दीये बना रही हैं – एकता, पर्यावरण और परंपरा का अद्भुत संगम।
बता दे की इन महिलाओं ने मिट्टी, चूना और गाय के गोबर से दीये बनाकर न सिर्फ एक पर्यावरण के अनुकूल विकल्प चुना, बल्कि हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा का भी दिल से सम्मान किया। उनके लिए ये केवल दीये नहीं हैं यह भारत की साझा संस्कृति, आदर और विश्वास का प्रतीक हैं।बुर्का पहने ये महिलाएं हर दिन 4-5 घंटे मेहनत करके दीये तैयार कर रही हैं।
वे कहती हैं, “हम ईद भी साथ मनाते हैं, दीपावली भी। हमने गोबर इसलिए चुना क्योंकि ये हिंदू भाइयों के लिए आस्था की चीज़ है। जब हम उनका सम्मान करते हैं, तभी हम सच्चे भारतीय कहलाते हैं। इन दीयों का उपयोग दीपावली के साथ-साथ देव दीपावली जैसे भव्य आयोजन में भी किया जाएगा, जहां काशी के ऐतिहासिक घाटों पर हजारों दीये जलाए जाएंगे।
इस आलोक पर्व में, इन मुस्लिम महिलाओं द्वारा बनाए गए दीयों से जब गंगा किनारे रोशन होगा, तब वह केवल एक धार्मिक दृश्य नहीं, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द की जीवंत तस्वीर होगी। यह पहल सिर्फ एक सामाजिक कार्य नहीं है, बल्कि उन लोगों के लिए करारा जवाब है जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाते हैं। ये महिलाएं दिखा रही हैं कि धर्म को लेकर कट्टरता नहीं, बल्कि समझ और सम्मान ही असली रास्ता है।
वे ना सिर्फ अपने मज़हब को मानती हैं, बल्कि दूसरों के धर्म की भावनाओं को भी बराबर अहमियत देती हैं। काशी की इन मुस्लिम महिलाओं ने इस दीपावली पर सिर्फ दीये नहीं बनाए, उन्होंने भारत की रगों में बहती साझा संस्कृति को फिर से जीवंत किया है। जब आप अपने घरों में इन दीयों को जलाएं, तो यह समझें कि उनमें सिर्फ रोशनी नहीं है – उनमें एकता, प्यार और भाईचारे की लौ भी जल रही है।
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