
बाराबंकी। चौदह भाषाओं के ज्ञाता एवं प्रख्यात विद्वान डॉ. भगवान वत्स की 89वीं जयंती सोमवार को वृद्धाश्रम सफेदाबाद में श्रद्धा और गरिमामय वातावरण के बीच मनाई गई। इस अवसर पर वृद्धाश्रम में रह रहे 125 वृद्ध दादा-दादी, समाजसेवी और विद्वानों ने एकत्र होकर डॉ. वत्स के जीवन, उनके ज्ञान और सामाजिक योगदान को स्मरण किया।
कार्यक्रम के दौरान डॉ. भगवान वत्स की बड़ी पुत्री एवं प्रिंसिपल डॉ. सुविद्या वत्स ने अपने पिता के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को साझा किया। उन्होंने बताया कि डॉ. वत्स ने अपने पूरे जीवन में शिक्षा, अनुशासन और मानव सेवा को सर्वोच्च स्थान दिया। उनका व्यक्तित्व केवल एक विद्वान तक सीमित नहीं था, बल्कि वे समाज को दिशा देने वाले प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में भी स्थापित रहे।
इस अवसर पर उमेश यादव, तनु यादव, शाज मेंहदी और डॉ. शिवनंदन यादव सहित अन्य वक्ताओं ने भी डॉ. वत्स से जुड़े अपने अनुभव साझा किए और कहा कि उनकी शिक्षाएं आज भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन करती हैं। वृद्धाश्रम के निवासियों ने उनके आदर्शों को स्मरण करते हुए श्रद्धा और आनंद व्यक्त किया।
कार्यक्रम के दौरान वृद्धाश्रम में सामूहिक भजन एवं गीत-संगीत का आयोजन किया गया, जिससे पूरा वातावरण सकारात्मक ऊर्जा और भावनात्मक उल्लास से भर गया। दादा-दादी ने पूरे उत्साह के साथ इसमें सहभागिता की। आयोजन के अंत में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के माध्यम से डॉ. वत्स के ज्ञान, सेवा और नैतिक मूल्यों के संदेश को आत्मसात किया गया।
यह आयोजन इस बात का प्रतीक बना कि ज्ञान, सेवा और नैतिक मूल्यों का समन्वय ही समाज को सशक्त बनाता है। डॉ. भगवान वत्स की जयंती ने उपस्थित सभी लोगों को उनके आदर्शों पर चलने और समाज सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाने की प्रेरणा दी।