कोरोना संकट ने सबसे ज्यादा हानि शिक्षा का किया है। कई क्षेत्रों में सरकार द्वारा फौरी राहत ढूंढ़ी गयी परन्तु शिक्षा के मामले में हमेशा बचने का काम किया गया। परन्तु बंद पड़े स्कूल और घर में बंद बच्चे समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं। आनलाइन शिक्षा की कमियों के साथ यह अरूचि और अवसाद का कारण भी बन गयी।
नयी शिक्षा नीति में बहुत कुछ बदलने की कोशिश है। बिगड़ चुका शिक्षा का ताना-बाना कब पटरी पर आयेगा, इसकी भी प्रतीक्षा रहेगी। बच्चे शिक्षा के मामले में उसी आतुरता के साथ फिर संलग्न हों रहें , इसका प्रयास भी नये सिरे से करना होगा। आर्थिक घाटा तो सरकार का भी है ऐसे में शिक्षा खर्च की भरपाई भी सरकार की चुनौतियों में रहेगी।
अनेक चुनौतियों के बीच सभी की जरूरत शिक्षा का बिखरे ताने-बाने को सही करने में एक बार फिर से अपने हिस्से का जोर सभी को लगाना होगा। बीते मार्च से स्कूल बंद चल रहे हैं कोरोना ने स्कूल खोलने का अवसर ही नहीं दिया। अब भी इस पर कोई निश्चित तारीख घोषित नहीं की गयी है। बच्चों की शिक्षा संकट में है और स्कूल फीस के अभाव में भारी नुकसान झेल रहे हैं।
स्कूलों को पहले ही निर्देश दे दिये गये थे कि वह फीस जमा कराने में असमर्थ अभिभावकों पर दबाव न डालें वरना उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। शुरू में यह सब बातें झेल ली गयीं परन्तु वक्त लम्बा खिंच रहा है। जाहिर है फीस के अभाव में स्कूल कैसे चलेंगे। देश के लाखों स्कूल अलग-अलग परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। यदि इन्हें फीस नहीं मिलती है तो यह बन्द भी हो सकते हैं।
सवाल यह भी है कि स्कूल खोलने को लेकर स्कूल संचालक कितने तैयार हैं और क्या अभिभावक स्कूल खुलने की स्थिति में बच्चों को भेजेंगे। क्या गाइडलाइन के अनुसार व्यवस्था चल पायेगी। भारत में स्कूल में पढऩे वाले बच्चों की कुल तादाद 33 करोड़ है। कुल जनसंख्या का करीब 20 फीसदी हिस्सा 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों का है जो शिक्षा का अधिकार कानून के अंतर्गत शिक्षा पर हकदारी रखते हैं।
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कई सरकारी स्कूल बच्चों को खाना खिलाते हैं जाहिर है सुरक्षा की दृष्टिï से यह भी सम्भव नहीं होगा। बन्दी के इस दौरान नौ करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल के साथ मिड-डे-मील से भी वंचित हैं। बच्चे ही नहीं, मुसीबत में तो शिक्षक भी हैं। भारत के स्कूलों में दस लाख से ऊपर काण्ट्रैक्ट पर काम करने वाले टीचर हैं।
केवल दिल्ली में ही यह संख्या 29 हजार से ज्यादा है। दिल्ली सहित उत्तर प्रदेश, बिहार एवं अन्य प्रान्तों के शिक्षक सैलरी न मिलने की शिकायत महामारी से पहले भी करते रहे हैं। ऐसे में कोरोना के चलते यह सब भी छिन्न-भिन्न हो गये हैं। निजी स्कूलों के टीचर की नौकरी भी खतरे में है।
कोरोना वायरस में बचाव को लेकर ही इन दिनों सारी कूबत झोंकी जा रही है। शारीरिक दूरी, मास्क और सेनिटाइजर तथा साबुन से हाथ धोने की चर्चा में ही चार महीने से अधिक वक्त निकल गया। स्कूल, ट्यूशन, कोचिंग सब बंद पड़े हैं। ऑनलाइन शिक्षा, बच्चों के पल्ले नहीं पड़ रही है। बच्चों का शिक्षा का जो चस्का होता था वह भी बेस्वाद हो रहा है।
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छोटे शहरों, कस्बोंमें बड़े कहे जाने वाले स्कूलों और शहरों में छोटे-मोटे स्कूलोंमें ऑनलाइन के नाम पर पढ़ाई केवल खानापूर्ति का काम कर रही है। केवल शिक्षा ही नहीं, बच्चों की भी स्थिति पहले जैसी तो कतई नहीं है। कोरोना काल में शिक्षा का ऊंट किस करवट बैठेगा इस पर सरकार को भी कुछ नहीं सूझ रहा है।
हालांकि इस दिशा में प्रयास जारी है सम्भव है कि आगे एक-दो महीने में स्कूल खुलने वाली स्थिति बने परन्तु इन्तजार शिक्षा की सही स्थिति की रहेगी और बिगड़ चुका शिक्षा का ताना-बाना कब फिर पटरी पर आएगा इसकी भी प्रतीक्षा रहेगी।