सियासत का सावन: कहीं नमाज की राजनीति, कहीं हर-हर की हुंकार!

सियासत का सावन: कहीं नमाज की राजनीति, कहीं हर-हर की हुंकार

लखनऊ।उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर धर्म और सियासत के गाढ़े रंगों में रंगने लगी है। जहां एक ओर समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव की दिल्ली की मस्जिद में सपा सांसदों के साथ बैठक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तूफान उठा रही हैं, वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में कांवड़ यात्रा पर हेलिकॉप्टर से फूलों की वर्षा हिंदुत्व एजेंडे को और धार दे रही है। दोनों नेताओं की ये गतिविधियाँ स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि 2027 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर ‘हरा बनाम भगवा’ ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रही है।

23 जुलाई को संसद मार्ग स्थित एक मस्जिद में अखिलेश यादव ने सपा सांसद मोहिबुल्ला नदवी, डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव और जिया उर रहमान बर्क के साथ मुलाकात की। इस तस्वीर के सामने आते ही भाजपा ने इसे चुनावी एजेंडे में बदल दिया। भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इसे साझा करते हुए आरोप लगाया कि धार्मिक स्थल का उपयोग राजनीतिक उद्देश्य के लिए किया गया, जो संविधान का उल्लंघन है। उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अखिलेश को “नमाजवादी” कहकर निशाना साधा और कहा कि यह सपा की पुरानी आदत है कि वह संविधान की मर्यादाओं को ताक पर रख देती है।

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने डिंपल यादव के परिधान को लेकर भी टिप्पणी की, जिसे सपा ने गैरजरूरी विवाद बताया। अखिलेश यादव ने भाजपा पर पलटवार करते हुए कहा कि बीजेपी समाज को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम कर रही है। डिंपल यादव ने सफाई दी कि वह मुलाकात एक पारिवारिक-सामाजिक भेंट थी, न कि राजनीतिक बैठक, जिसमें इमाम की पत्नी भी मौजूद थीं।

इस बीच, सावन के महीने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कांवड़ यात्रा को भव्य बनाने के लिए विशेष इंतजाम किए। हेलिकॉप्टर से फूलों की वर्षा, विशेष मार्ग, सुरक्षा और स्वच्छता जैसे प्रयासों को भाजपा का हिंदुत्व एजेंडा बताया जा रहा है। भाजपा का कहना है कि यह श्रद्धालुओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता और सांस्कृतिक प्रतिबद्धता का प्रतीक है।

सपा ने योगी सरकार की इस पहल को ‘दिखावा’ करार दिया। अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा को सत्ता में आए 11 साल हो गए, लेकिन अब तक कांवड़ियों के लिए कोई स्थायी व्यवस्था नहीं की गई। उन्होंने वादा किया कि सपा सत्ता में आई तो कांवड़ यात्रा के लिए अलग कॉरिडोर बनाएगी। इस बीच सपा ने भाजपा के मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों को काटने के लिए खुद भी कांवड़ यात्रा में भागीदारी शुरू की है। सपा सांसद इकरा हसन ने सहारनपुर में कांवड़ शिविर में स्वयंसेवकों संग भोजन परोसा और पार्टी कार्यकर्ताओं ने हरिद्वार से कांवड़ यात्रा की शुरुआत की।

2027 की लड़ाई को लेकर दोनों दल अपनी रणनीति पुख्ता कर रहे हैं। सपा का पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) मॉडल और भाजपा का हिंदुत्व-विकास मिश्रण, प्रदेश की सियासत को एक बार फिर धार्मिक और सामाजिक खांचे में बाँटने की दिशा में अग्रसर है। सपा ने इटावा में केदारेश्वर महादेव मंदिर निर्माण का प्रस्ताव देकर संकेत दे दिया है कि वह भी ‘मंदिर राजनीति’ में पीछे नहीं रहने वाली। वहीं योगी सरकार धार्मिक पर्यटन को चुनावी सफलता में बदलने की दिशा में अयोध्या, काशी और मथुरा जैसे स्थलों पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है।

2024 के लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए भाजपा को 33 सीटों पर सीमित कर दिया था, जबकि सपा ने 37 सीटें जीती थीं। इस बढ़त से उत्साहित अखिलेश यादव अब पीडीए मॉडल को और अधिक आक्रामक बनाने में जुट गए हैं। उनका फोकस गैर-यादव ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों को एकजुट करने पर है। दूसरी ओर भाजपा योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में हिन्दू वोटबैंक को और ठोस करने की रणनीति पर काम कर रही है।

सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा कि उनकी पार्टी सामाजिक समरसता की राजनीति करती है, जबकि भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति करती है। इसके उलट भाजपा का आरोप है कि मस्जिद में बैठक कर सपा ने फिर वही तुष्टीकरण की राजनीति दोहराई है जो उसका पुराना चेहरा रहा है।

साफ है कि यूपी की राजनीति एक बार फिर धार्मिक पहचान, आस्था और प्रतीकों के सहारे चुनावी रंगत पकड़ रही है। एक ओर अखिलेश यादव ‘समावेशी आस्था’ के जरिए नए मुस्लिम-ओबीसी समीकरण को साधना चाहते हैं, वहीं योगी आदित्यनाथ अपनी पहचान ‘सनातन परंपरा के रक्षक’ के रूप में और मजबूत कर रहे हैं। 2027 की लड़ाई सिर्फ सत्ता की नहीं होगी, बल्कि दो वैचारिक धाराओं के बीच आस्था और सामाजिक समीकरणों की भी लड़ाई होगी—एक तरफ हरा और दूसरी तरफ भगवा।