
वृन्दावन। ब्रजभूमि में भक्तिभाव और आध्यात्मिक उल्लास से भरपूर माहौल के बीच जन-जन के लाड़ले ठाकुर बांकेबिहारी लाल का 482वां प्राकट्योत्सव धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया गया। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी के अवसर पर निधिवनराज में प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में आयोजित दिव्य महाभिषेक और शोभायात्रा ने तीर्थनगरी को भक्तिरस से सरोबार कर दिया।
प्राकट्यस्थली पर सुबह लगभग 4 बजे मंदिर के पट खुलते ही भक्तों की जय-जयकार गूंज उठी। लगभग 2100 किलो दूध, दही, घी, शहद और बूरा से बने पंचामृत से प्राकट्य स्थल का वैदिक मंत्रोच्चार के मध्य महाभिषेक किया गया। सेवायत भीकचंद्र गोस्वामी और रोहित गोस्वामी के नेतृत्व में हुए इस दिव्य अनुष्ठान के दौरान वातावरण ‘जय जय कुंजबिहारी’, ‘हरिदास जय हरिदास’ जैसे भक्ति घोषों से भर उठा। हजारों भक्त इस अलौकिक महाभिषेक के साक्षी बने और भाव-विभोर होकर प्रभु सान्निध्य का आनंद उठाते रहे।
इस अवसर पर पूरे मंदिर परिसर को लगभग 500 किलो देशी–विदेशी फूलों से सजाया गया। पीले वस्त्रों, पुष्पों और गुब्बारों से सजे बांकेबिहारी मंदिर का नजारा देखते ही बन रहा था। प्रातःकाल से ही भक्त कतारबद्ध होकर दर्शनों हेतु पहुंचे और ठाकुरजी व स्वामी हरिदास महाराज के जयकारों से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो उठा। दर्शन व्यवस्था को सुचारू रखने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा चाक-चौबंद सुरक्षा बंदोबस्त किए गए तथा मुख्य मार्गों पर ट्रैफिक और ई-रिक्शों को नियंत्रित किया गया।
महाभिषेक और महाआरती के उपरांत स्वामी हरिदास महाराज रजत रथ पर विराजमान होकर बांकेबिहारी मंदिर पहुंचे। स्थान-स्थान पर शोभायात्रा की आरती उतारी गई और पुष्पवर्षा से दिव्य स्वागत किया गया। शोभायात्रा में आगरा, मथुरा, वृन्दावन और दिल्ली के बैंड, विभिन्न झांकियां, संकीर्तन मंडलियां तथा भक्तिमय धुनों पर नाचते-थिरकते श्रद्धालु शामिल रहे। जगह-जगह बनाई गई रंगोलियों ने पूरे मार्ग को उत्सवमय बना दिया।
मंदिर में ठाकुरजी को परंपरागत मोहनभोग—केसरयुक्त देशी घी के हलवे—का भोग लगाया गया। इसके साथ ही आराध्य बांकेबिहारी को बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से श्रृंगारित किया गया। ठाकुरजी को हीरे–सोने के मुकुट, करधनी, पाजेब, बाजूबंद, हार और मुक्तामाल धारण कराई गईं। विशेष राजभोग आरती के दौरान पूरा मंदिर परिसर भक्तिरस, प्रेम और जयघोषों से भर उठा। श्रद्धालुओं में उत्साह का ऐसा सैलाब उमड़ा कि पूरा वातावरण दिव्यता से ओत-प्रोत हो गया।
बांकेबिहारी मंदिर और निधिवनराज में दिनभर लगभग 1 लाख श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन किए जाने का अनुमान है। सायंकाल निधिवनराज मंदिर में आतिशबाजी और विद्युत रोशनी की सुंदर सज्जा ने उत्सव का समापन और भी भव्य बना दिया।
ब्रज की इस अद्वितीय परंपरा को जीवित रखते हुए, बांकेबिहारी के 482वें प्राकट्य का यह पावन अवसर भक्तों के लिए आध्यात्मिक आनंद, भक्ति और दिव्य स्मरण का विराट पर्व बन गया।