महापर्व छठ का प्रारंभः चूल्हे पर बनी लौकी की सब्जी और भात खाकर व्रतियों ने शुरू की उपासना


रिपोर्ट – राजेश सरकार

प्रयागराज। सूर्य उपासना के महापर्व छठ का शुभारंभ शनिवार को नहाय-खाय के साथ हुआ। व्रतियों ने स्नान कर शुद्धता के साथ चूल्हे पर बिना लहसुन-प्याज की लौकी की सब्जी और भात (चावल) बनाकर ग्रहण किया, जिससे उन्होंने इस व्रत की पवित्र उपासना की शुरुआत की। सूर्यास्त के बाद व्रतियों ने देशी घी में बनी लौकी, आलू और गोभी की सब्जी तथा रोटी खाकर निर्जला व्रत का संकल्प लिया।

दीपावली के बाद आने वाला यह पर्व पूर्वांचल का सबसे प्रमुख पर्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार का समापन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होता है। व्रती महिलाएं और पुरुष पूरे विधि-विधान से छठी मइया की पूजा करते हैं और परिवार के सुख-समृद्धि की मंगल कामना करते हैं।

रविवार को दूसरे दिन खरना का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखेंगे और सूर्यास्त के बाद बिना दूध की गुड़ और नया चावल मिश्रित बखीर (खीर) बनाकर छठी मइया को अर्पित करेंगे। रोटी या पूड़ी, अदरक, मूली और मौसमी फल प्रसाद के रूप में अर्पित किए जाते हैं। चंद्रमा के दर्शन से पहले व्रती स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं, फिर उसे परिवार और पड़ोसियों में बांटा जाता है। इसके साथ ही पूरी रात निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।

तीसरे दिन सोमवार को व्रती महिलाएं गंगा, यमुना या निकट की नदियों के तट पर जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं। प्रयागराज में संगम, बलुआ घाट और अरैल तट पर बड़ी संख्या में व्रती और श्रद्धालु एकत्र होते हैं। इस दौरान घाटों पर दीप, फूल और भजन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठता है। महिलाएं आंगन में बेदी बनाकर गन्ने का मंडप सजाती हैं, उसके नीचे कलश रखकर दीप प्रज्ज्वलित करती हैं और ठेकुआ, फल व अन्य प्रसाद अर्पित करती हैं। वे समूह में पारंपरिक गीत गाकर छठी मइया से पूरे परिवार की कुशलता की प्रार्थना करती हैं।

मंगलवार को चौथे और अंतिम दिन 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत संपन्न होगा। जैसे ही भोर में सूर्य की पहली किरण जल पर पड़ती है, व्रती महिलाएं नदी के जल में खड़ी होकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह दृश्य पूरे प्रयागराज में आस्था, भक्ति और उल्लास का संगम बन जाता है।

अर्घ्य के बाद घाटों पर आतिशबाजी और गीत-संगीत से पर्व का उल्लास चरम पर होता है। व्रत के समापन पर व्रती महिलाएं पारण करती हैं — यानी 36 घंटे का निर्जला व्रत जल और प्रसाद ग्रहण कर तोड़ा जाता है। पारण में व्रत रखने वाली महिलाएं हरी सब्जी, दाल, पकौड़ी और चावल का सेवन करती हैं।

छठ महापर्व का यह आयोजन केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि भारतीय लोक संस्कृति और पर्यावरण के प्रति सम्मान का प्रतीक भी है। मिट्टी के चूल्हे, प्राकृतिक अन्न, नदी के जल और सूर्यदेव की उपासना — यह सब मिलकर छठ को प्रकृति और मानव के एकात्म भाव का उत्सव बना देते हैं।