#भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच तनातनी में फिलहाल नरमी के संकेत हैं। कई हफ्ते से जारी चीन की धौंस के सामने जिस मुस्तैदी से भारत खड़ा हुआ है, वह एक मिसाल है। हमारी सेना के जज्बे और राजनीतिक नेतृत्व के साहस ने चीन को फिर यह संदेश दे दिया है कि पड़ोसी होने के नाते सहकार और सहयोग का हमेशा स्वागत है लेकिन हमारी धरती को कब्जे में लेने की कोशिश का मुकाबला पूरी ताकत के साथ होगा। माना जा रहा है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच वीडिया कांफ्रेंसिंग के जरिये हुई बातचीत के बाद चीन के रुख में नरमी आई। इसे हाल-फिलहाल एक अच्छा संकेत माना जा सकता है कि गलवान घाटी में दोनों देशों के बीच निश्चित दूरी तक अपने-अपने सैनिकों को पीछे हटने पर सहमति हो गई है। भारत की सैन्य और कूटनीतिक प्रयासों के कारण पूर्वी लददाख के गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग और गोगरा पोस्ट से चीन ने अपनी सेना पीछे हटा ली है। इस घाटी के गश्ती बिंदु 14 को लेकर सैनिक संघर्ष हुआ था। चीनी सेना ने वहां से अपने टेंट और ढांचे हटा दिए हैं।
तात्कालिक रूप से सहमति का अर्थ यह है कि चीन और भारत के बीच जिस सामरिक टकराव की अटकलें लगाई जा रहीं थीं, उनपर अल्पविराम लग गया है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मामला सिर्फ गलवान घाटी का ही नहीं बल्कि गलवान घाटी के आसपास के समूचे क्षेत्र का है, जिन पर चीन ने अपने एक निश्चित योजना के तहत नजरें गड़ाई हुई हैं। यह क्षेत्र चीन की दूरगामी आर्थिक और सामरिक रणनीति का हिस्सा है। इसलिए यह अपेक्षा करना कि गलवान घाटी के समझौते से वहां कोई स्थायी शांति की स्थिति पैदा हो पाएगी किसी भी सूरत में व्यावहारिक नहीं होगा।
इस समय दोनों देशों के मध्य स्थिति यह है कि चीन के पास वास्तविक नियंत्रण रेखा के क्षेत्र को लेकर उसके उपयोग की महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसके माध्यम से वह पड़ोसी देशों में अपनी सीधी पैठ बनाना चाहता है। जबकि भारत के पास ऐसी कोई योजना नहीं है और भारत को वहां जो दायित्व निभाना है, वह यह है कि नई दिल्ली अपनी संप्रभुता के नाम पर अपनी सीमाओं की रक्षा करे। यह अपेक्षा करना किसी भी तरह से उचित नहीं होगा कि भारत की संप्रभुता की खातिर चीन अपने इरादों से पीछे हट जाएगा। तात्कालिक व्यावहारिक हितों को देखते हुए वह फौरी तौर पर तो पीछे हट सकता है, लेकिन स्थायी तौर पर नहीं। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि भारत के सामने चीन ने जो इस समय चुनौती खड़ी है, वह आगे भी बनी रहेगी और भारत को निरंतर सतर्कता बनाए रखनी होगी। भारत की ओर से स्थायी हल की पेशकश तभी हो सकेगी जब वह आक्रामक तरीके से इस क्षेत्र के विकास को अपनी मुख्यधारा के विकास से जोड़ेगा और किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए उसे सामरिक रूप से तैयार रहना होगा।