आर्थिक असमानता को कैसे कम किया जाए.

आर्थिक असमानता किसी भी देश और उसके नागरिको के लिए बड़ा घातक होता है. भारत में आर्थिक असमानता ने नागरिको के जीवन स्तर पर बुरा असर डाला है. इसे जड़ से ख़त्म तो नहीं किया जा सकता है, मगर सरकार और नागरिक अपने प्रयासों द्वारा इस पर बहुत हद तक नियंत्रण कर, देश का असल मायने में विकास कर सकते है.


ऐसा नहीं है कि सरकार आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए कुछ नहीं कर रही है, लेकिन सरकार को इस विषय में गंभीर होने की आवश्यता है. विश्व आर्थिक असमानता रिपोर्ट-2018 के अनुसार दुनिया में शीर्ष 0.1 प्रतिशत व्यक्तियों के पास विश्व की 13 प्रतिशत संपति है. जबकि भारत में शीर्ष 10 प्रतिशत व्यक्तियों के पास देश की 56 प्रतिशत संपति है.


देश में अमीर और अमीर बनता जा रहा है, जंहा गरीब को दो वक्त की रोटी कमाने के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. आर्थिक असमानता ने अधिकतर नागरिको की कमर तोड़ दी है. सरकार भी इसमें पूरी तरह से राजनीति के कारण कार्यवाही नहीं कर पाती है.

आर्थिक असमानता को कैसे कम किया जाए.


भारत के केवल 21 सबसे बड़े अरबपतियों के पास देश के 70 करोड़ लोगों की सम्पत्ति से भी ज्यादा दौलत है, यानी मोटे तौर देश की आधी दौलत महज 21 अरबपतियों के पास है. यह खुलासा एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ऑक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट में हुआ है.


सरकार जरूरतमंद नागरिको के लिए नई नई योजनाएं लाती रहती है, लेकिन उसका असल फायदा उन जरूरतमंद लोगो तक ठीक से पहुंच ही नहीं पाता है. इसमें अधिकतर गलती सरकार की ही होती है. अधिकतर मामलो में देखा गया है कि योजना का अधिकतर लाभ तो ऐसे व्यक्ति लेते है जो उसके हकदार ही नहीं होते है. हम राशन कार्ड का ही छोटा सा उदाहरण दे देते है, बीपीएल राशन कार्ड गरीबी से नीचे का जीवन यापन कर रहे लोगो के लिए बनता है, और एपीएल राशन कार्ड गरीबी रेखा से ऊपर का जीवन यापन कर रहे लोगो के लिए बनता है, जिसका लाभ एक तय आय सीमा के वर्गो के लिए ही होता है. ऐसे व्यक्ति जिनके पास चार पहिया गाड़ी ,कार या ट्रैक्टर आदि वाहन जिनके पास हो वह राशन कार्ड के पात्र नहीं है. लेकिन सरकारी अधिकारी के सहयोग या लापरवाही के कारण अधिकतर लोग दोनों कार्ड का खूब प्रयोग कर जरूरतमंद नागरिको का हक़ मार रहे है. जिसका अतिरिक्त भार सरकार पर ही पड़ता है.


सरकार को राजनीति से अलग हट कर इस गंभीर विषय में काम करने की जरुरत है, इसमें हर एक जिम्मेदार नागरिक को भी अपना सहयोग करना चाहिए. अपने आसपास या राह में किसी की दयनीय आर्थिक स्थिति की चर्चा कर अपनी राय व्यक्त करके हम उस इंसान की कोई आर्थिक मदद नहीं कर सकते है. एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, अगर हम किसी योजना के पात्र नहीं है तो उसका लाभ बिलकुल नहीं लेना चाहिए. लेकिन यह किसी एक के करने से नहीं होगा, इसके लिए सरकार को सख्त से सख्त कदम उठाते हुए, सरकारी योजनाओं का दुरुप्रयोग करने वाले सरकारी अधिकारिओं और नागरिको के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए.


अगर किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य ख़राब हो जाता है और उसे कोई गंभीर बीमारी लग जाती है, तो उस परिवार की आर्थिक हालात इतने ख़राब हो जाते है कि परिवार को अपना घर, जमीन जायदाद सब बेचना पड़ जाता है. सरकार की आयुष्मान कार्ड की 5 लाख की सीमा भी गंभीर बीमारी के खर्चो पर राहत नहीं दे सकती है. अपने मेहनत के बल पर कार्य करने वाले नागरिको को कम से कम स्वास्थ्य सेवा तो मुफ्त होनी चाहिए. यह ऐसी परेशानी है जो किसी भी नागरिक को एक कठिन राह में लाकर खड़ा कर सकती है.


हालाकि अधिकतर नागरिक स्वास्थ्य बीमा में भी साल की किस्त देकर अपना पैसा खर्च कर रहे है ताकि भविष्य में स्वास्थ्य समस्या में होने वाले खर्चे से बचा जाए. यह सुविधा सरकार ने भारत के हर नागरिक को मुफ्त में देनी चाहिए, उसमे कोई सीमा नहीं होनी चाहिए. आज के प्रतिस्पर्धा के समय में निजी सेक्टर में कब किसी का रोजगार छीन जाए, इसमें कोई संदेह नहीं है. जब देश में इस तरह का माहौल होता है तो बेरोजगारी, गरीबी और अपराध अपने आप पनपने लगता है. आर्थिक असमानता एक गंभीर विषय बन चूका है, इसमें बिलकुल भी राजनीति न करते हुए, इसको जड़ से ख़त्म करने के उपायों में कार्य करते हुए, महत्वपूर्ण कार्यवाही और योजनाओं की आवश्यकता है.