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विधार्थियों पर बढते परीक्षा के दवाब को कम करने का माता- पिता, अध्यापक और समाज का दायित्व.- Amar Bharti Media Group राष्ट्रीय, देश, नई दिल्ली नई दिल्ली

विधार्थियों पर बढते परीक्षा के दवाब को कम करने का माता- पिता, अध्यापक और समाज का दायित्व.

जीवन अनमोल है. अगर इंसान सकारात्मक और सत्य की राह में चलता है तो उसकी राह में कठिनाई जरुर आती है. लेकिन वह हर परिस्थिति में खुशहाल जीवन जीना सीख जाता है. ऐसा बिलकुल नहीं है कि सिर्फ उच्च पदों में बैठे व्यक्ति ही खुशहाल जीवन जीते है. अपितु दोनों ही उच्च पदों और उनके अधीनस्थ, सुख और दुःख अपने अपने सकारात्मक और नकरात्मक सोच और कर्मो के अनुसार भोगते है. उनकी इसी सकारात्मक और नकरात्मक सोच का अच्छा और बुरा असर बच्चे की परवरिश और उनके विधार्थी जीवन में भी पड़ता है.


हर एक विद्यार्थी में अलग अलग विशेषता होती है, किसी की रूचि पढाई में, किसी की खेल में, किसी की अभिनय में, तो किसी की गायन आदि में होती है. शिक्षा हर एक इंसान के लिए बहुत जरुरी होती है. हर एक विद्यार्थी को, परीक्षा के तनाव के बिना और अपने माता- पिता और अध्यापकों के द्वारा परीक्षा में 90 प्रतिशत अंक लाने के दबाव के बिना, शिक्षा हासिल करने का अधिकार है.

विधार्थियों पर बढते परीक्षा के दवाब को कम करने का माता- पिता, अध्यापक और समाज का दायित्व.


बच्चों को अच्छे अंक लाने के लिए उनके माता-पिता को उनकी पढाई का घर में टाइम टेबल के साथ साथ उनके खेल-कूद और मनोरंजन का भी बराबर ध्यान रखना बहुत ही जरुरी है. अधिकतर माता- पिता इसका पूरा ध्यान रखते है. लेकिन वो एक सबसे बड़ी गलती करते है, यह सबसे बड़ी गलती है समाज में चल रही प्रतिस्पर्धा की भावना. जैसा हमने पहले ही बताया था कि हर एक बच्चे में अपनी एक अलग विशेषता होती है, जिसको पहचान कर बच्चे को उस क्षेत्र में आगे बढाने का कर्तव्य हर एक माता-पिता का होता है.


हम मानते है कि बच्चे ग्रुप में घर में या अपने कोचिंग में मिलकर पढ़ें, जिससे एक दुसरे के ज्ञान का आदान प्रदान हो. मगर उनमे प्रतिस्पर्धा की भावना से एक दुसरे से आगे बढने के कारण किसी प्रकार का तनाव न हो. उनको ये समझाना जरुरी है कि “ग्रुप स्टडी” एक दुसरे को ज्ञान का आदान प्रदान करना है, न कि किसी तरह की प्रतिस्पर्धा.


जब तक हम अपने बच्चों को यह बात नहीं सिखायेंगे कि आप में और हर बच्चे में अपनी एक अलग विशेषता होती है, इसलिए अगर आप के अंक आपके मित्र से कम या अधिक आ जाते है तो कभी भी अपने को अपने मित्र से अधिक अंक लाने पर, अपने को मित्र से बेहतर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए और न ही अपने को अपने मित्र से कम अंक आने पर, उससे बेहतर न होने का सोचकर कभी परेशान नहीं होना चाहिए. इससे अलग हटकर अपनी विशेषता में काम कर एक सफल इंसान बन, समाज में अपना योगदान देना चाहिए.


अगर कोशिश करने के बावजूद बच्चा परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाता है तो भी उसे बहुत प्यार से समझाने की आवश्यकता होती है, उसे ऐसे समय में अपने माता-पिता, भाई बहन और मित्रो के सकारात्मक व्यवहार और प्यार की आवश्यकता होती है. जिससे वह आगे अपनी परीक्षा उत्तीर्ण कर, एक सफल और अच्छा इंसान बन समाज की सेवा कर सके.


अब समय आ गया है कि प्रतिस्पर्धा की भावना के चक्कर में हम अपने बच्चों को परीक्षा के तनाव में न डाले. अगर समाज से प्रतिस्पर्धा की भावना को हम अपनी सकारात्मक सोच का उपयोग करते हुए समाज से दूर कर दें, तो हम समाज से उन होनहार बच्चों को कभी नहीं खोएंगे, जो अपने माता पिता के सपनो को पूरा करने के दवाब में आत्महत्या जैसा बुरा मार्ग चुनकर अपने जीवन का अंत कर लेते है.


देश से आये दिन विधार्थियों, मेडिकल, इंजीनियरिंग या किसी बड़ी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे अधिकतर कैंडिडेट का अपने परिवार और समाज के प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण, तनाव में आ जाना स्वाभाविक है. अक्सर सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में विद्यार्थियों और मेडिकल, इंजीनियरिंग या किसी बड़ी सरकारी नौकरी आदि की तैयारी कर रहे कैंडिडेट्स का आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेने की खबर आती रहती है. कितना दुःखदायी और दिल दहला देने वाला क्षण होता होगा, उस परिवार के लिए, जिसका बच्चा आत्महत्या जैसा गलत कदम उठा लेता है.


कोई भी विद्यार्थी पढ लिखकर एक खुशहाल जीवन जीना चाहता है और समाज में अपना योगदान देना चाहता है. जीवन का नाम संघर्ष है, समय परिवर्तनशील है. अगर बुरा समय चल रहा है तो अच्छा समय भी जरुर आएगा. बस हमे मेहनत से कभी दूर नहीं भागना चाहिए. हमे यह बात अपने बच्चों को जरुर समझाना चाहिए. पूरी दुनिया में ऐसा कोई परिवार नहीं होगा जो अपने व्यापार और नौकरी में संघर्ष न कर रहा हो. बड़ी से बड़ी आर्थिक समस्या से लड़कर माता-पिता अपने परिवार का भरणपोषण करते है, इसी प्रकार अगर विद्यार्थी परीक्षा में माता- पिता के अनुरूप अच्छा स्कोर नहीं कर पाता है तो कभी भी उसपर अनैतिक दवाब नहीं बनाना चाहिए. अगर बच्चे को समझाया जाए और उसकी रूचि को समझा जाए तो वह बच्चा अपनी पूरी उम्र ख़ुशी के साथ अपनी रूचि के कार्य को करते हुए, न केवल परिवार को पूरा आर्थिक रूप से सपोर्ट करेगा बल्कि समाज में भी अपना योगदान देगा. आप हमारा आर्टिकल “अत्यधिक मानसिक तनाव से बचने के उपाय” भी पढ सकते है.