यूपी में मसाले की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नतशील बीज, उन्नत कृषि तकनीक के साथ मसालों पर शोध व किसानों को दिया जा रहा प्रशिक्षण
लखनऊ। कोरोना काल में मसाले की महत्ता को सभी ने महसूस किया। उसके बाद विश्व में मसालों की अनुमानित माँग वृद्धि 3.19 प्रतिशत है, जो की जनसंख्या वृद्धि दर से ठीक ऊपर है। जिसको ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश में किसानों को उत्पादकता बढ़ाने हेतु उन्नतशील बीज, उन्नत कृषि तकनीक के साथ साथ मसालों पर शोध एवं किसानों को प्रशिक्षण देते हुए मसाला उत्पादन में बढ़ोत्तरी की जा रही है।
उत्तर प्रदेश के कृषक खरीफ में हल्दी, अदरक, मिर्च एवं प्याज आदि की खेती करते है तथा रबी मौसम में धनिया, सौंफ, मेथी, लहसुन, अजवाइन, कलौंजी एवं मंगरैल आदि की खेती करते हैं लहसुन उत्पादन से बढ़ी किसानों की आय
लहसुन भी किसानों को एक अधिक आय देने वाली महत्वपूर्ण मसाले की फसल है इसके रोजाना प्रयोग करने से पाचन क्रिया में सहायता एवं मानव रक्त में कोलेस्ट्रॅल की भी कमी होती है। इसका उपयोग भोजन के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे-अचार, चटनी, पाउडर एवं लहसुन पेस्ट बनाने में किया जाता है। उत्तर भारत में लहसुन की बुवाई अक्टूबर-नवंबर में की जाती है। प्रति हेक्टेयर 5-6 कुन्तल बीज की आवश्यकता होती है जिससे औसतन 150 से 200 कुन्तल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त हो जाता है।
मिर्च का सर्वाधिक निर्यात
मिर्च एक सर्वाधिक निर्यात की जाने वाली मसाला की फसल है, जिसका उपयोग प्रत्येक घरों में हरी एवं सूखी दोनों रूप में किया जाता है। मिर्च की खेती के लिए गर्म एवं आर्द्र जलवायु सबसे उपयोगी होती है। इसकी प्रजातियों का चुनाव बोने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके।
मसाला उत्पादन व निर्यात में भारत की स्थिति
वैसे भी भारत प्राचीन काल से ही मसालों की भूमि के नाम से जाना जाता रहा है। मसाला एक लो वाल्यूम एवं हाई वैल्यू वाली फसल हैं। अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन के अनुसार विश्व के विभिन्न भागों में 109 मसाला प्रजातियों की खेती की जाती है। भारत में भी विभिन्न प्रकार की मृदा एवं जलवायु होने के कारण 20 बीजीय मसालों सहित कुल 63 मसाला प्रजातियां उगाई जाती है। भारत विश्व में मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता एवं निर्यातक देश है। भारत के कुल मसाला उत्पादन का 90 प्रतिशत घरेलू माँग की पूर्ति में उपयोग होता है।