
हरदोई। खरीफ सीजन की बुवाई के बाद अब हरदोई जनपद के किसान डीएपी और यूरिया जैसी जरूरी खादों के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। धान, मक्का, बाजरा, ज्वार, उड़द, तिल्ली, गन्ना और कपास जैसी फसलों की बुवाई के बाद खाद की मांग बढ़ गई है, लेकिन सहकारी समितियों की निष्क्रियता और खुले बाजार में बढ़ती कालाबाजारी ने हालात बिगाड़ दिए हैं।
सरकारी रेट और जमीनी हकीकत में अंतर
सरकार ने डीएपी की कीमत ₹1350 और यूरिया की कीमत ₹266.50 तय कर रखी है, लेकिन किसानों को ये खादें ₹1650 और ₹330 तक में मिल रही हैं। हैरानी की बात यह है कि निजी विक्रेता रसीद भी नहीं दे रहे हैं, जिससे कालाबाजारी का संदेह और गहरा गया है। किसान आरोप लगा रहे हैं कि खाद विक्रेताओं और प्रशासन के बीच मिलीभगत से यह संकट और गहराया है।
सहकारी समितियों की बदहाली
कछौना ब्लॉक क्षेत्र में सिर्फ बालामऊ, कछौना पतसेनी, पुरवा (मतुआ) और गौसगंज समितियां ही सीमित रूप में काम कर रही हैं, जिनमें से दो में तो सचिव तक तैनात नहीं हैं। महरी, सुठेना, हथौड़ा राज्य, पहावां और खजोहना जैसी समितियां वर्षों से बंद हैं। किसानों से सदस्यता शुल्क लेकर भी इन समितियों को फिर से शुरू नहीं किया गया। रेलवे स्टेशन के पास स्थित पीसीएफ केंद्र भी कई वर्षों से बंद पड़ा है।
सिर्फ रसूखदारों को खाद, आम किसान वंचित
जो समितियां काम कर रही हैं, वे भी खाद का आवंटन केवल रसूखदार और सिफारिशी किसानों को कर रही हैं। आम किसानों को या तो खाद नहीं मिल रही या फिर उन्हें खुले बाजार में ऊंची कीमत पर घटिया क्वालिटी की खाद खरीदनी पड़ रही है।
किसानों की आवाज़
किसानों रमेश कुमार, रामखेलावन कनौजिया, दीनदयाल, अरुण कुमार, ऋषि सिंह, पंकज कुमार, मनोज पाल, हरिनाम और प्रेम कुमार यादव ने बताया कि वे कई दिनों से खाद के लिए भटक रहे हैं। उन्हें सहकारी समितियों और निजी दुकानों दोनों जगह से मायूसी ही हाथ लग रही है। खुले बाजार की खाद में मिलावट की आशंका भी बनी हुई है।
भारतीय किसान यूनियन का विरोध और मांग
भारतीय किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष राज बहादुर सिंह यादव ने इस पूरे मामले को लेकर शासन और प्रशासन को अवगत कराया है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते खाद संकट का समाधान नहीं हुआ तो खरीफ की फसलों पर गंभीर असर पड़ेगा। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि कालाबाजारी रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई हो और सहकारी समितियों को सक्रिय किया जाए।
सरकार के दावे और जमीनी सच्चाई में फर्क
एक तरफ सरकार आत्मनिर्भर भारत और किसानों की समृद्धि की बात करती है, तो दूसरी ओर खाद जैसे जरूरी संसाधनों की किल्लत किसानों को तबाह कर रही है। ज़रूरत है कि जिला प्रशासन गंभीरता से इस मुद्दे को संज्ञान में ले, दोषियों पर कार्रवाई करे और किसानों को राहत देने के लिए ठोस कदम उठाए।