ट्रेडिंग कंपनी के नाम पर चल रहा था ‘साबिया गर्ल्स’ अवैध मदरसा, 160 बच्चियों का भविष्य संकट में

कुशीनगर, 30 अगस्त।
जिले के खड्डा थाना क्षेत्र के भुजौली बुजुर्ग (बाजार) गाँव में शिक्षा व्यवस्था और प्रशासन की लापरवाही का बड़ा मामला सामने आया है। एक मकान के भीतर “साबिया गर्ल्स” नाम से मदरसा संचालित हो रहा था, जिसकी न तो शिक्षा विभाग से मान्यता थी और न ही किसी स्तर पर स्वीकृति। चौंकाने वाली बात यह रही कि इस अवैध मदरसे में करीब 160 बच्चियाँ नामांकित थीं और कक्षा पाँच तक की पढ़ाई कर रही थीं।

सूचना पर खंड शिक्षा अधिकारी अमित चौहान जब मौके पर पहुँचे तो सच्चाई खुलकर सामने आ गई। छोटे-छोटे तंग कमरों में बच्चियों को हरे पर्दों से घेरकर ज़मीन पर बैठाकर पढ़ाया जा रहा था। न तो फर्नीचर था, न ही आवश्यक शैक्षिक सुविधाएँ। एक मौलाना बच्चियों को दीनी तालीम दे रहा था, जबकि भवन के बाहर एक ट्रेडिंग कंपनी का बोर्ड टंगा हुआ था। खंड शिक्षा अधिकारी ने तत्काल मामले की जानकारी खड्डा उपजिलाधिकारी को दी। उपजिलाधिकारी मौके पर पहुँचे और अवैध संचालन की पुष्टि होते ही मदरसे को सील कर दिया। अचानक हुई इस कार्रवाई से पूरे इलाके में हड़कंप मच गया।

मदरसा प्रबंधक और पूर्व प्रधान प्रतिनिधि निसार अहमद के संरक्षण में यह संस्थान चल रहा था। निसार अहमद ने सफाई देते हुए कहा कि मदरसा स्थानीय विधायक के कहने पर संचालित किया जा रहा है। हालांकि खड्डा विधायक विवेकानंद पाण्डेय ने इन आरोपों को पूरी तरह से निराधार बताया। विधायक ने कहा कि “योगी सरकार में कोई भी संस्था बिना मान्यता के नहीं चल सकती। निसार अहमद न तो मुझसे मिले और न ही कभी संचालन की बात हुई। मदरसा संचालक के आरोप पूरी तरह झूठे हैं। अवैध मदरसे को सील कर दिया गया है और आगे कार्यवाही भी की जाएगी।”

इस पूरे घटनाक्रम ने बच्चियों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि बिना मान्यता वाले संस्थानों से पढ़ने वाले बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में शामिल होने में कठिनाई होती है। वे न तो सरकारी योजनाओं का लाभ उठा पाते हैं और न ही उनकी शिक्षा मान्य होती है। ऐसे में 160 बच्चियों का भविष्य अधर में लटक गया है।

ग्रामीणों का भी आरोप है कि इतने बड़े पैमाने पर बच्चियों की तालीम वर्षों से चल रही थी, लेकिन प्रशासन ने समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की। उनका कहना है कि शिक्षा विभाग की चुप्पी और लापरवाही के कारण बच्चियों का भविष्य संकट में पहुँच गया। ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि एक ओर सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाएँ चला रही है, दूसरी ओर मान्यता रहित मदरसे और स्कूल वर्षों तक बिना रोक-टोक चलते रहते हैं। यह प्रकरण शिक्षा व्यवस्था की खामियों और प्रशासनिक लापरवाही का जीवंत उदाहरण है। अब सबकी नज़र इस बात पर टिकी है कि प्रशासन इन बच्चियों की पढ़ाई और भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आगे क्या ठोस कदम उठाता है।